बुधवार, 1 जनवरी 2014

मेरा सजन बड़ा हठीला है।

मेरा सजन बड़ा हठीला है।
अमृत घट को खोल खोल
प्रेमासव को तोल -तोल
कुछ कसक कसैली मदिर घोल
मांगता मुझसे मधु मीरा है।
मेरा सजन बड़ा हठीला है।
अमानिशा में सुख भरता
अद्वय में द्वय को हरता
आत्म अंतर में लय करता
रिक्त गात मधु पूरित करता
मधु रसिक बड़ा रंगीला है।
मेरा सजन बड़ा हठीला है।
तृष्णाओं का जगद्जाल
पंचभूत मिथ्या  जंजाल
मेरे तेरे की  मृषा माल
आगत सुगत या विगत काल
त्रय ग्रंथि मुक्ति का हीला है।
मेरा सजन बड़ा हठीला है। ………… अरविन्द



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