मैं बुलाऊँ कविता में तुझे प्यारे
उड़ कर आओ, दौड़े आओ घर हमारे
द्वार खड़ी मैं पंथ निहारूं ,देखूं बाट तुम्हारी
अब तो आओ सजन प्यारे ,मैं हारी ,मैं हारी।
नित नित दीपक बालुं मैं चौखट पर धर कर
नित नित छत पर चढ़ी निहारूं आँखें मैं भर भर कर
तू निर्मोही ,पाहन रखे क्यों तू अपने हिय पर
मेरे मन फागुन उतरा है ,तू समझे नहीं दुष्कर
उमर हमारी बीत रही है हे मेरे प्रियवर
अब आ जा तू द्वारे मेरे क्यों तड़पावे जी भर। ....... अरविन्द
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