विचार था कि विजयदशमी के दिवस पर अपना ब्लॉग --यां चिन्तयामि आरम्भ करूँ . शीर्षक के विषय में अचानक भर्तृहरि के शतक का श्लोक कौंध गया '--यां चिन्त्यामी सततं--.मयी पर मैं भर्तृहरि नहीं हूँ .न ही जिनके विषय में मैं सोचता रहता हूँ वे मुझसे विरक्त हैं .परन्तु चिंतन तो है--इसलिए यां चिन्तयामि ही उपयुक्त शीर्षक लगा . इसी से आरम्भ करता हूँ .
सोचना ,विचारना ,मीमांसा , समीक्षा ,परीक्षण , पर्यवेक्षण, निरीक्षण ,अनुभवन आदि स्वाभाविक क्रिया है .आकाश में टिमटिमाते तारों तरह भिन्न -भिन्न विचार कोंधते रहते हैं . अनुभूति अभी मृत नहीं हुई , नए -नये अनुभवों ने अभी पीछा नहीं छोड़ा है ,इसीलिए स्थितियो , संबंधों , व्यक्तिओं , लक्ष्यों आदि विचार तितलिओं के समान नाचते रहते हैं .
धर्म ,अध्यात्म ,परमात्म ,आत्म , अनात्म ,कर्म , कर्मकांड ,पुस्तकें , साहित्य ,आत्मीयता , अनात्मीयता , अंतरंगता , सामाजिकता ,राजनीति ,पाखण्ड, वयक्तिक मापदण्ड , ईर्ष्या , हेल्ला ,विव्वोक , रस , रास ,नीरसता , शान्ति -अशान्ति ...पता नहीं कितने बिंदु ऐसे हैं जिनकी ओर मन अपने आप आकर्षित हो जाता है .
डायरी लिखनी तो अब बंद -प्राय है , तो ब्लॉग ही सही . मेरे मित्र -अमित्र सब पढें . अपनी प्रतिक्रिया दें . इसी इच्छा से यह ब्लॉग समर्पित है . हमारी समस्याएँ भी समान हैं और समाधान भी .
अगर हम दुराग्रही या पूर्वाग्रही होकर सीमित रह गये तो जीवन के निरंतरता को , उसके प्रवाह को नकार देंगे . तो क्यों हम मानस -प्रवाह को रोकें ? थोडे -बहुत अपने हैं . कुछ हैं जो दूर प्रतीत होते हैं --क्यों न उन्हें समीप लाने का प्रयास करें ? सबकी उपलब्धिया हैं . क्यों न उनका सदुपयोग करें ?
मानवीय आत्मीयता के भव्य द्वार पर दस्तक दें --सम्भावनाओं का रुद्ध द्वार खुले ....आओ आगत को जगाएँ .
कविताएँ हमारी बाट जोह रही हैं ,संस्मरण हमारी प्रतीक्षा कर रहे हैं .हमारे व्यंग्य हमें मुस्कुराना चाहते हैं
अनुभवों की नित नवीनता का इन्द्रधनुष आभा मान है .
परमात्मा के इस मायाजन्य मोहकता से मुक्त हों .........
सोचना ,विचारना ,मीमांसा , समीक्षा ,परीक्षण , पर्यवेक्षण, निरीक्षण ,अनुभवन आदि स्वाभाविक क्रिया है .आकाश में टिमटिमाते तारों तरह भिन्न -भिन्न विचार कोंधते रहते हैं . अनुभूति अभी मृत नहीं हुई , नए -नये अनुभवों ने अभी पीछा नहीं छोड़ा है ,इसीलिए स्थितियो , संबंधों , व्यक्तिओं , लक्ष्यों आदि विचार तितलिओं के समान नाचते रहते हैं .
धर्म ,अध्यात्म ,परमात्म ,आत्म , अनात्म ,कर्म , कर्मकांड ,पुस्तकें , साहित्य ,आत्मीयता , अनात्मीयता , अंतरंगता , सामाजिकता ,राजनीति ,पाखण्ड, वयक्तिक मापदण्ड , ईर्ष्या , हेल्ला ,विव्वोक , रस , रास ,नीरसता , शान्ति -अशान्ति ...पता नहीं कितने बिंदु ऐसे हैं जिनकी ओर मन अपने आप आकर्षित हो जाता है .
डायरी लिखनी तो अब बंद -प्राय है , तो ब्लॉग ही सही . मेरे मित्र -अमित्र सब पढें . अपनी प्रतिक्रिया दें . इसी इच्छा से यह ब्लॉग समर्पित है . हमारी समस्याएँ भी समान हैं और समाधान भी .
अगर हम दुराग्रही या पूर्वाग्रही होकर सीमित रह गये तो जीवन के निरंतरता को , उसके प्रवाह को नकार देंगे . तो क्यों हम मानस -प्रवाह को रोकें ? थोडे -बहुत अपने हैं . कुछ हैं जो दूर प्रतीत होते हैं --क्यों न उन्हें समीप लाने का प्रयास करें ? सबकी उपलब्धिया हैं . क्यों न उनका सदुपयोग करें ?
मानवीय आत्मीयता के भव्य द्वार पर दस्तक दें --सम्भावनाओं का रुद्ध द्वार खुले ....आओ आगत को जगाएँ .
कविताएँ हमारी बाट जोह रही हैं ,संस्मरण हमारी प्रतीक्षा कर रहे हैं .हमारे व्यंग्य हमें मुस्कुराना चाहते हैं
अनुभवों की नित नवीनता का इन्द्रधनुष आभा मान है .
परमात्मा के इस मायाजन्य मोहकता से मुक्त हों .........