गुरुवार, 29 मई 2014

ऑस्ट्रेलिया ---5

ऑस्ट्रेलिया ---5
हमें ईशान की बुआ के घर जाना था। वे मेरे लिए अपरिचित थीं ,न बच्चों को जानता था ,न परिवार को परन्तु उनसे मिलने की इच्छा थी क्योंकि ईशान और उनकी बच्चियाँ आपस में बहुत घुले मिले थे। हम उनके घर पहुंचे और अपनी भाषा में बातें करने का सुख लिया। दूर ,विदेश में ,कहीं कोई अपने देश का और अपनी भाषा का मिले ,तो ऐसे लगता है जैसे बड़े दिनों के बाद दिल की खिड़की को खोल कर ताज़ी हवा का झोँका मिला हो।
    उनके बच्चे भी मिले, तो मैं उनसे उनकी पढाई के विषय में जानने के लिए बातें करने लगा। उनकी बड़ी लड़की आशी आठवीं कक्षा में पढ़ती है। मैंने उससे जब किताबें देखने के लिए मांगीं तो पता चला कि यहां किताबें केवल स्कूल में ही होती हैं। बच्चों को विकसित करने के लिए उन्हें पूरी स्वतंत्रता है। हमारे स्कूलों की तरह उनके कोमल कन्धों पर ,भारी भारी बस्तों का बोझ नहीं है। मेरे मन में यहां की शिक्षा व्यवस्था को जानने की इच्छा हुई ,तो पता चला कि छोटे बच्चों के लिए यहाँ चाइल्ड केयर सेंटर हैं ,जिनमें बच्चों की ज्ञानेन्द्रियों को विकसित करने के लिए  रचनात्मक खेल ही एकमात्र शिक्षा है। खेल खेल में उन्हें अक्षर ज्ञान ,गिनती आदि सिखाई जाती है। जबकि हमारे यहां ऐसा नहीं है।
      भारत के कान्वेंट स्कूलों में भी यह पद्धति अपनायी नहीं जाती। मैने कान्वेंट स्कूल के बच्चों के माता और पिताओं को बच्चों के गृह -कार्य में व्यस्त देखा है और यहां बच्चो को घर के लिए कोई काम ही नहीं दिया जाता। उनके दैहिक ,मानसिक और बौद्धिक विकास के लिए बिलकुल भिन्न पद्धति है। हमारे यहां शिशु -शिक्षण में सकारात्मकता कम और निषेध ज्यादा हैं। यहां निषेध है ही नहीं।
       बातचीत में बच्चों से कैसे वार्तालाप करना है --इसके लिए भी यहां माता -पिता के लिए डिश संकेत हैं। वार्तालाप के विभिन्न सन्दर्भ इतने  सकारात्मक हैं कि बातचीत के चार वर्ग निश्चित किये गए हैं। यहां की शिक्षा -नीति ने परिवार में ,पठन -पाठन में ,खेल में बच्चों से कैसे बात करनी है और कौन कौन से वाक्य बोलने हैं --इसकी भी शिक्षा माता -पिता को दी जाती है। बच्चों को कुछ सिखाने से पूर्व माता -पिता को सिखाया जाता है ,ताकि बच्चों में ,उनके व्यक्तित्व में कोई नकारात्मकता विकसित न हो सके। घरों में कौन कौन से वाक्य बोलने हैं ,वे सभी लिख कर दिए जाते हैं। उन्हें ही यहां लिख रहा हूँ ताकि हम तुलना कर सकें।
                75 ways to encourage children
In the family----1.Please, 2, Thank you, 3, How thoughtful, 4, You are the bees knee!,
5, I love you , 6, What a lovely smile 7, Thank you for sharing 8,You are the great help ,9, Let"s make dinner, 10, I am very proud of you, 11, That was a kind thing to do , 12, You are being very gentle, 13, I like being with you ,14, I like doing things together, 15, Lets take turns, 16, You are playing so well with your brother/sister,
17, You did a great job with your chores, 18, How was your day.
b)---With friends--
19, You are fun to be with, 20, You are being a wonderful friend , 21, That"s excellent sharing! 22, Being together is great , 23 , Your friend is being very caring .
Reading and Language----
  24, This is my favourite book too . 25. Lets read together. 26. What an imagination .
27. What do you think about that . 28. Brilliant idea ! 29. That was very polite. 30. Well spoken . 31. You choose a book . 32. Shall we read together ? 33. I would love to read you a story.  34 . lets sing a song . 35. What"s your favourite book ? 36. What a funny joke 36. Can you tell me a story .
                                                                      -----cont.

        
       

मंगलवार, 27 मई 2014

पुकारो तो सही

पुकारो तो सही
सागर फलांग के आएंगे
तुम कुछ कहो न कहो ,
आनंद के देवदूत --
स्वर्गिक सुख दे जाएंगे।
प्रेम प्यार की रटन छोड़
कुछ कदम बढ़ाओ
मंजिल के सहयात्री हम
हँसते मुस्काते तुम्हें
सहलायेंगे।
यात्रा की थकन मिटायेंगे। .......... अरविन्द

सागर अपना घर है बंधु

सागर अपना घर है बंधु
आकाश हमारी मंजिल।
ऊपर उठना ,ऊपर उड़ना
हम सब  हैं निर्दम्भिल ।
जीवन तो अविरल यात्रा
जीवन अविरल झरना।
जीवन उन्मुक्त गगन में
अविरल ऊपर उड़ना।
हम क्यों बंधे जगत में
प्यारे ,यह नहीं है अपना।
उस पार हमारा घर है बंधु ,
नहीं रुक सकता उड़ना ,उठना। ………… अरविन्द

लोहरी के संग

ढोल बजे ,मंजीरा बजे और बजे शहनाई
पंजाबी मन में उमंग लोहरी की है छाई।
मालवा के आकाश में रंग बिरंगी पतंग ,
जीवन यौवन हुलसता इस लोहरी के संग।
आई प्रियतम अंगने सुन ढोलक की थाप,
गिद्दे भीतर झलक रही सोहनी की सौगात।
चारपाई पर रांझणा लुक छिप करता घात ,
बड़े बूढ़ों की भीड़ में अँखियन करता बात ।
उत्सव हमारे उल्लास के नित हमें जगावें
जीवन रस को बाँट लो ,नाहीं तो पछतावें। ………अरविन्द

आदमी

आदमी
 केवल पांच तत्व का
 पुतला ही नहीं ,
कामनाओं और अंधी आशाओं का
बंधा सरोवर है।
जीते जागते मनुष्य ,
धर्म के तथाकथित प्रचारक,
देवताओं की आरतियों के
मशीनी संवाहक ,
गद्दियों पर बैठे
मूढ़ मन उपदेशक ,
पिच्छल्गू सेवक ,
खोखली संतानें ,
सत्ता के लोभी
विकृत राजनीतिज्ञ ,
मोह ,ममता,अज्ञान ,
मलीनता की स्त्री मूर्तियां
कामनाओं की अंधी भीड़ से भरे
मनुष्य नुमा चेहरे ,
मृत पुरुषों की
मिटटी में गड़ी अस्थियों ,
कब्रों और मटियों के इर्दगिर्द
चक्कर लगाते हैं।
पुरुषार्थ को
 वासनाओं के कुँए में डुबो कर
मृत आदमियों की अस्थियों से
इच्छा पूर्णता का वर
चाहते हैं।
मिटटी के पुतले
मिट्टी पर नाक रगड़ते
मिट्टी में मिल जाते हैं
परमात्मा जीवित है
आत्मा के अंतस में
जागता है---देख नहीं पाते  हैं।
सद्गुरुओं की खेती को
पाखंडी पशु चर जाते हैं। …………… अरविन्द



गुरुवार, 22 मई 2014

आस्ट्रेलिया ---४

आस्ट्रेलिया ---४
कल यहाँ बादल थे। सारी  रात बरसते रहे। यहां अक्सर बरसात तो होती ही है ,पर मौन बरसात है। मुझे बरसने की आवाज तो सुनाई नहीं दी ,सुबह उठा तो पता चला कि रात होले -होले  बरसती रही है। चुपचाप अभिसारिका सी, विरह भीगी --मौन और सुबकती सी।
मुझे सुबह जागते ही आकाश को देखने की इच्छा होती है। हालाँकि आज बादल के टुकड़े आकाश में घूम रहे थे ,जैसे हमारे यहां बच्चे गलियों में घूमते रहते हैं। तो भी आज आकाश मुझे हँसते हुए दिखाई दिया। ऐसे ही जैसे विराट मुस्कुरा रहा हो ,परमात्मा भी तो खुले आकाश सा मुस्कुराता है। वही आकाश यहां भी वैसा ही है जैसा मेरे यहां है। कोई परिवर्तन नहीं। मुस्कुराता हुआ ,निरभ्र ,चमकता हुआ ,बेलौस ,बिना किसी अंतर्द्वंद्व के। चिरपरिचित सूर्य ने भी उसी प्रकार मेरे जल को स्वीकार किया जैसे वह करता है। कुछ भी तो अपरिचित नहीं। न रात ,न बरसता हुआ जल ,न भीगती हुई  धरती ,न पेड़ पौधे ,न ही चहकती चिड़ियाँ --कुछ भी तो अपरिचित नहीं। सामने के घर से कुछ सफ़ेद कबूतर उड़ते हैं। पड़ोस में कुत्ता भी भौंकता है ,पर इस कुत्ते की आवाज ऑस्ट्रेलियन है। यह पंजाब के कुत्तों जैसा नहीं। यहां के लोगों की तरह कुत्ते भी सफाई पसंद हैं। मुझे कोई भी आवारा कुत्ता सडकों पर घूमता हुआ नहीं मिला। अजब देश है ,पशु भी हैं ,पर सभ्य। हमें अपरिचित दृष्टि से देखते तो हैं ,परन्तु भौंकना चाहते हुए भी भौंकते नहीं --सभ्य।
शांति और मौन यहां की आदत लगती है। कहीं कोई शोर नहीं। चुप -चाप कारें दौड़ रही हैं ,पर हॉर्न की कोई आवाज नहीं। लोग मुस्कुरा कर पास से गुजर जाते हैं ,बस ,हाथ भर हिलाते हैं। शायद यही हालचाल पूछने का तरीका है। अच्छा है। कोई किसी को रोकता नहीं। हमारी तरह सड़क पर रुक कर पूरे  घर का ,पास पड़ोस का कोई हाल नहीं पूछता। समय व्यर्थ गंवाना नहीं चाहते। सब बहुत  व्यस्त हैं। काम पर जाना ,निरन्तर काम में लगा रहना ,शाम को लौटना और अपने -अपने घर में घुस जाना ,यहां की दैनिक दिनचर्या है।
     हमारे घर में सब्जियों की आवश्यकता थी। राजन सब्जी लेने के लिए जाने लगे तो मुझे भी साथ ले गए। अपने घर में मैने सब्जी खरीदनी छोड़ी हुई है। हमारे यहां ,होशियारपुर में सब्जी वाले गलियों में ही घूमते हुए सब्जी दे जाते हैं। यहां सब्जी के लिए मॉल में जाना जरूरी है। मेरे मन में भी जाने की इच्छा थी। मैं भी यहां के मॉल को देखना चाहता था ,सो तैयार हो गया।
          खुली सडकों पर दौड़ती हुई कार कब मॉल में पहुँच गयी --पता ही नहीं चला। मैं तो साफ -सुथरी सड़कें देख रहा था। सुव्यवस्थित यातायात देख रहा था --कब मॉल आ गया मुझे पता ही नहीं चला।
           हम एक बहुत लम्बे -चौड़े हाल के बाहर खड़े थे। चमचमाती न्यून लाइट्स चमक रही थीं। लोगों की भीड़, बड़े आराम से , बिना किसी धक्के के आ जा रही थी। स्त्रियां पुरुष ,बच्चे बूढ़े --सभी। कोई किसी को धक्का नहीं मारता ,कोई चुहलबाजी नहीं ,कोई छींटाकसी नहीं ।  हमारे यहां इतनी भीड़ हो और कंधे से कन्धा न भिड़े ,स्वाद ही नहीं आता। हम धक्का पसंद लोग और यहां एक निश्चित दूरी पर चल रही सभ्यता।
        सब्जी मंडी में पहुँचते ही मैं अचंभित था। मेरे सामने साफ सुथरी ,हरी भरी ,ताजे फलों और सब्जियों की बहुत सुन्दर हाट। हमारे यहां की सब्जी मंडी कभी भी इतनी सुन्दर ,इतनी साफ़ और इतनी ताज़ी नहीं हो सकती। कोई दुकानदार नहीं ,लोग मनपसंद सब्जियां खुद ही चुन रहे हैं। ढेरों के ढेर सब्जियां।
   मैं भी भीतर आया। केले देखे --ऐसे केले , किसी नवजात शिशु की स्वस्थ कोमल बाहँ जैसे। ऱसभरी मुझे टमाटर लगी। आलू --लाल ,गुलाबी ,पीले ,मटमैले ,मोटे और सुन्दर। राजन सब्जियां खरीदने में व्यस्त थे और मैं खोया हुआ था। एक भी पिलपिला आलू मुझे ढूंढने पर भी नहीं मिला। गोभी ,हरी भरी --मुझे ऐसे लगी जैसे  किसी सुंदरी के जूडे को  ही सजा कर रखा हो। गोल गोल फ़ुटबाल जैसी हरी भरी पत्तगोभी। कच्ची -लम्बी सफ़ेद मूलियाँ ,स्पंज जैसे सफ़ेद कुक्कुरमुत्ते ,रक्तिम लाल तरबूज ,सुगन्धित मोटे  खरबूजे , रेशम जैसी कोमल भिन्डी। मैं हाथ लगा कर छू छू कर देख रहा था।
ऑर्गेनिक फलों और सब्जियों की कतारें मेरे सामने थी।
        हैरान मन फिर अपने पंजाब की सब्जी मंडी में, न चाहते हुए भी, पहुँच गया। यूरिया से उपजी बीमार सब्जियां मेरे सामने थीं। टीके लगे फल मुहं चिड़ा रहे थे। दुकानदारों के लालची चेहरे घिन उपजा रहे थे। भाव तौल के  बाद माप तौल के कपटी तराजू मुझे चिड़ा रहे थे।
   इतने में राजन जी ने मेरा ध्यान भंग  किया। वे सब्जियां खरीद चुके थे। और मैं अपने देश के दुराचारी व्यापार के विषय में सोचते हुए उनके पीछे -पीछे घर के लिए चल दिया। मेरा मन चाहता था की इन व्यापारियों को इनके ईमानदार व्यापार के लिए शुभ कामनाएं दूँ। पर वे सभी बेपरवाह अपने कर्म में तल्लीन दिखे।
      समाज और जनता के प्रति व्यापारियों का यह उत्तरदायित्व मुझे अपने देश में कब दिखाई देगा ?--यही एक प्रश्न मन में कुलबुला रहा था। …………अरविन्द

आकाश सी निर्मलता

आकाश सी निर्मलता
 उसकी बाहों में मिले, तो
आकाश हो जाऊं।
सागर की गहराई
अंक में हो ,तो
अतल अंतस्थल में
निर्द्वन्द्व उतरता जाऊं।
संकुचित मन में
यह सम्पदा हो नहीं सकती
मैं ,कभी भी, मैं को
छोड़ नहीं सकती --
ताल इसीलिए सागर नहीं हो पाये
असीम आनंद का आकर नहीं हो पाये।
निसर्ग की आकुलता को हम
समझ नहीं पाये --
ताल तलैयों को छोड़
संबंधों का उन्मुक्त सागर
नहीं हो पाये। ……………… अरविन्द

रिश्ते

विषय और वस्तुओं पर
निर्भर रिश्ते
रिश्ते नहीं व्यापार होते हैं।
मन की स्वीकृति और
निस्वार्थ
अपनापन रिश्तों के उपहार होते हैं।
अहं छोड़ हाथ थामो मित्र ,
तब रिश्ते --
भार नहीं होते हैं।
खुले आकाश की तरह
जो बाँध न सकें
वे ,रिश्ते नहीं ,बस ,
भार होते हैं। ………… अरविन्द

मंगलवार, 20 मई 2014

आस्ट्रेलिया ------3

आस्ट्रेलिया ------3
आज मैलबर्न के आकाश में बादल छाए हुए हैं ,लहराती हुई हवा में वृक्ष मुस्कुरा रहे हैं ,थोड़ी -थोड़ी ठण्ड भी है ,हवा का सुखद स्पर्श मेरे बालों को छेड़ रहा है और मैं ओवाटा विक्टोरिया की उस गली में घूम रहा हूँ जहाँ गायत्री ,ईशान और राजन का घर है। मीठी -मीठी बूंदाबांदी हो रही है मेरी पत्नी कल्याणी भी इस फुहार भीगी शाम में ठिठुरती हुई ओवाटा की इस साफ़ सुथरी गली में सैर कर रही है। मेरा मन भारत और आस्ट्रेलिया के सामाजिक प्रशासन की तुलना में व्यस्त है। एक मेरा देश है जिसके पास अत्युन्नत सांस्कृतिक सम्पदा है ,षड्ऋतुयों के क्षणे क्षणे नवता को प्रकट करता सौंदर्य है , ऋषियों की परम -प्रज्ञा की परादृष्टि विद्यमान है , संतों का सार्वजनीन चिन्तन और परम -सुख की कामना है ,वैदिकता की वेदी पर आयत्त औपनिषदिक प्रज्ञा से परिवेष्टित ब्रह्म के निराकार और साकार रूप का अभौतिक परम तत्व विद्यमान है ,सामाजिक जीवन में विविध उत्सवों का सामूहिक उल्लास हमारी नैसर्गिक संपत्ति है ,सर्वान्तर सुख के हम सर्वत्र आनंद कामी हैं ,और भी बहुत कुछ ऐसा है जिसे हम अपने गौरव की अहं शीला का आधार मान कर आत्म -प्रफुल्लित हो रहे हैं ,तो भी हम पिछड़े हुए हैं , हमारी प्रशासनिक अव्यवस्था की अमावस्या और अन -अनुशसित स्वच्छंदता ने हमारे आंतरिक और बाह्य सौंदर्य -सुख का हनन कर लिया है ,हमारी अस्मिता अस्वस्थ राजनैतिक दुर्नीतियों के दोहन का शिकार हो रही है ,सामूहिक अकर्मण्यता हमारी सत्ता का शोषण कर चुकी है , हम स्वयं कुछ भी रचनात्मक संकल्प से रहित हैं ,दिशाहीन और किंकर्तव्यविमूढ़ हो चुके हैं ,अव्यवस्था में जीन हमारी नियति बन चुकी है ---यहां आकर ऐसा मुझे लग रहा है।
आस्ट्रेलिया के मैलवर्ण में पहला कदम रखते ही मुझे यहां की प्रशासनिक सुव्यवस्था के दर्शन हुए। स्वच्छता ,सौंदर्य ,समन्वय ,समता और सुख प्रकट रूप में दिखाई दिए। जैसे -जैसे इस नगर में प्रवेश करता गया वैसे -वैसे साफ़ -सुथरी गलियों के सौंदर्य ने खुली बाहों से मुझे स्वीकार किया। बिछी हुई सड़कें ,जिन में किसी भी तरह के गड्ढे के पैबंद नहीं थे ,उन सडकों ने हमारा स्वागत किया। नगर से दूर निकल कर जब आस्ट्रेलिया के ग्रामीण प्रदेश में पहुंचे, तो वहां की सड़कें और गलियां भी खूबसूरत मिलीं --स्वच्छ ,सुन्दर ,चौड़ी और हरियाली भरी। किसी भी गली में मुझे कहीं गंदगी या कूड़ा नहीं दिखा। किसी भी सफाई कर्मचारी के दर्शन नहीं हुए। कहीं कोई सड़क बुहारते हुए नहीं मिला। इतना व्यवस्थित प्रदेश ! न कही गंदगी ,न रद्दी कागजों के टुकड़े ,न सब्जियों के ,फलों के छिलके ,न मिटटी के ढेर ,न उड़ते हुए लिफ़ाफ़े ,न कहीं रुका हुआ पानी ,न कीचड़।
साफ़ सुथरी सडको पर निर्द्वन्द्व दौड़ती हुई कारें , प्रसन्न चेहरे ही दिखाई दिए। अचानक फिर मुरझाया हुआ पंजाब मेरी आँखों के सामने आ गया। गड्ढों से भरी सड़के ,गिरते -पड़ते बच्चे और बूढ़े ,ठोकरें खाती स्त्रियां ,कीचड़ उछालती दौड़ती कारें ,स्कूटरों की अनियंत्रित कतारें , धूल उड़ाती बसें ,गंदगी में मुहं मारते कुत्ते ,गायें, दीवारों की ओट में लघुशंका करते बेशर्म लोग ,बे लगाम यातायात ----सब याद आने लगा।
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी ---इस पंक्ति का वास्तविक अर्थ यहां आकर ही समझ आया। गंदगी ,कुसंस्कार ,जाहिलता ,मूर्खता ,दुष्टता इत्यादि चीजें सदियों तक पीछा नहीं छोड़ती। तो हम कैसे सुधर जाएँ।
जिस देश की जनता नीतिहीन ,दम्भी ,स्वार्थी ,झूठे ,मक्कार, देश की संपत्ति के अपहर्ता लोगों को अपने नेताओं के रूप में चुनते हों ,वहां स्वच्छता ,सुख ,सौंदर्य ,समता और समन्वय हो ही नहीं सकता। यही नरक है। ………… अरविन्द --------------------क्रमशः। …

ॐ शांति ! शांति ! शांति !........2..

ॐ शांति ! शांति ! शांति !
भारतीय चिंतन धारा में हम प्रत्येक मन्त्र के बाद हम शांति शब्द का उच्चारण करते हैं। हमें बताया गया है की शांति हमारी आत्मा की मांग है। आत्मा निर्विकल्पिक रूप से शान्तिकामी है। इन्द्रियों की संगति और बाहरी परिवेश की संघर्षमयी स्थितियां , नित्य की अनित्य आवश्यकताएं ,दैहिक अपरिहार्यताएं और नैरन्तर्य की व्यस्तता हमारी मानसिक शांति में व्याघात उत्पन्न करती है। शायद इसीलिए हम भारतीय शान्तिकामी हैं। अपने मन और आत्म से बातचीत करना भी तो एक प्राकृतिक कर्म है ,इसीलिए हम भी अक्सर एकांत की इच्छा करते हैं। शांत बगीचे की तलाश में निकलते हैं। परन्तु यहां आस्ट्रेलिया में अद्भुत शांति के दर्शन कर रहा हूँ। हम विक्टोरिया में रुके हुए हैं। यहां घर तो अनेक हैं ,पर कहीं कोई शोर नहीं। सारा मोहल्ला चुप है ,किसी भी घर से न बच्चों की किलकारियाँ सुनाई पड़ रही हैं , न स्त्रियों की बातचीत सुन पा रहा हूँ ,न वृक्षों पर कोई चिड़िया ही चहक रही है ,न कोई वृद्ध किसी बालक पर खीझ उतार रहा है। अद्भुत शांति है।
शांति वस्तुतः आत्मसाक्षत्कार का साधन है। इस प्रदेश की अद्भुत शांति मुझे सोचने को बाध्य करती है कि क्या यहाँ के लोग इतने आत्म -तुष्ट हैं कि उन्हें कोई जिज्ञासा ही नहीं रही ? इतने आत्म -निर्भर हैं कि इन्हें किसी दूसरे की आवश्यकता ही नहीं ? इतने आत्म -केंद्रित हैं कि हमारे सभी कवि बेचारे पीछे छूट गए हैं। न कहीं कोई रेडियो बज रहा है ,न कहीं कोई चीखता चिल्लाता है ---बस केवल हवा की सनसनाहट है ,पत्तियों का हिलना है ,वृक्षों का झूलना है ,पत्तों का कांपना है ,बादल का उड़ना है ---शेष शान्ति है।
मुझे अब तक कहीं किसी गली में बतियाते हुए युवा नहीं मिले ,कहीं इठलाती हुई नटखट बच्चों की कोई टोली नहीं दिखी , न ही कहीं अभी तक मैने वृद्धायों को बातचीत करते हुए देखा। सब अपने अपने में तल्लीन ,अपने में बंद ,खिड़कियां बंद ,दरबाजे बंद ,मुस्कराहट हीन चेहरे।
मुझे अपना होशियारपुर याद आ रहा है। सूरज के आने से पहले सैर के लिए भागते लोग , गलियों में भौंकते कुत्ते , आँगन बुहारती स्त्रियां , बच्चों की चिल्ल्पों , कारों और स्कूटरों की दौड़ , हलवाइयों की दुकानों की भीड़ , छत्तों पर टहलते लोग ,एक दूसरे के घरों की ताक - झांक करती आँखें , मंदिरों में घंटियों के स्वर, गुरुवाणी के गीत -संगीत बहुत कुछ याद आ रहा है।
शान्तिकामी भारत की अंतरंग आत्मीयता और परिचय के शांत मौन में लिप्त विदेशी मानसिकता --- पूर्व और पश्चिम के सामाजिक चिंतन को प्रत्यक्ष रूप से समझना जरुरी हो चुका है। क्योंकि जीवन -दर्शन भिन्न है। मनुष्य चाहे पूर्व में जन्मे या पश्चिम में --प्रक्रिया एक जैसी है ,तो जीवन पद्धति के दृष्टिकोण में अंतर का मूल जानना भी आवश्यक है। भौतिक और अभौतिक में वरेण्यता कहाँ हो ---निश्चय जरुरी है। -------------------------------२ -------------अरविन्द

भारत और ऑस्ट्रेलिया

भारत और ऑस्ट्रेलिया
यात्रा ,विशेषकर विदेश की ,मेरे लिए एक अद्भुत यात्रा रही है। इस समय हम ऑस्ट्रेलिया में हूँ ,अपनी पुत्री गायत्री ,अपने जामाता श्री राजन और अपने दौहित्र ईशान के पास। दो दिन पहले यहाँ पहुंचा हूँ। खुले आकाश से समुद्र को पार करके,बादलों के बीच से रास्ता बनाते हुए ,बादलों के देश में पहुंचा हूँ। ऐसा देश जिसके आकाश में सफ़ेद बादल ऐसे उड़ रहे हैं जैसे किसी धुनकर ने सफ़ेद रुई धुन कर आकाश में खुले मन से उड़ा दी हो या किसी बुढ़िया ने खीझ कर अपनी रजाई उधेड़ दी हो या किसी मनचले ने उजले सफ़ेद खरगोशों को उछल कूद मचाने के लिए आकाश के आँगन में छोड़ दिया हो। ऐसा ही है यह देश। अभी यहां की संस्कृति ,यहां की सभ्यता ,यहां का लोकाचार ,यहां की परम्परा ,यहां के रिवाज और यहां के समाज के विषय में जानना है। यहां के विश्वविद्यालयों में जाना है। यहां अपने देश की भाषा हिंदी की स्थिति को भी समझना है। यहां के मंदिर ,यहां की पूजा ,उपासना को भी समझना है और भारतीय धर्म साधना ,अध्यात्म के बिखरे सूत्रों को भी देखना है। उत्तर भारत और दक्षिण भारत के जो लोग यहां आये हुए हैं ,रह रहे हैं उनके व्यवहार और दैनिकी को भी समझना है।
जब भारत से चला था, तो वहां चुनावी खुमार चढ़ा हुआ था। अब वह खुमार उत्तर चुका है और भारतीय जनता पार्टी पूरे बहुमत से जीत चुकी है। इसे मैं देश का सौभाग्य ही मानता हूँ क्योंकि पिछली सरकारों के गठबंधन की अवसरवादी सोच ने और नेताओं के सत्ताभोगी अहंकार की दूषित मनोवृति ने इस सांस्कृतिक देश को बहुत नुक्सान पहुँचाया है ,बी जे पी अवश्य उस कलंक को धो पायेगी --ऐसी सबको आशा है। कांग्रेस का हारना तो निश्चित था ,परन्तु आम आदमी पार्टी को लोग अस्वीकार कर देंगे यह नहीं सोचा था। इस राजनैतिक दाल को अभी जनतांत्रिक प्रक्रिया में बहुत कुछ सीखना है। और यह सबके लिए हितकारी भी होगा। स्वतंत्रता के बाद से कांग्रेस ने सोचविहीन तंत्र दिया --यह राजनैतिक सत्य है। इस देश के पास अगर किसी पार्टी के पास देश के सर्वजन समुदाय के अभ्युदय के लिए कोई विचारधारा है ,तो वह केवल भारतीय जनता पार्टी ही है। इस पार्टी को पूर्ण बहुमत देकर देश की जनता इनकी भी परीक्षा लेना चाहती है --यह इस पार्टी को समझना होगा। और आम आदमी पार्टी को भी इसी प्रकार अपनी सोच को विकसित करना होगा ।
इस यात्रा ने मेरे लिए दोनों पड़ाव खोल दिए हैं। मुझे आस्ट्रेलिया की राजनीती और भारत को भी समझना है। ------------------------अभी इतना ही -----------अरविन्द

रविवार, 18 मई 2014

आओ !

आओ !
तुम्हें अपने एकांत के
अंतरंग कक्ष में ले जाऊं।
शीशे की दीवार से बाहर की
दुनिया दिखाऊं।
मौन के साम्राज्य में चुप बैठे
परिंदे की अंतर्कथा
सुनाऊँ।
आओ ! अपने एकांत में ले जाऊं।
जहाँ भागते हुए लोगों की
भीड़ नहीं ,
सब अकेले हैं।
अलग -थलग लोगों के
अपने -अपने झमेले हैं।
जिजीविषा है
चिकीर्षा है
बुभुक्षा है ,दिदृशा है।
गगनचुम्बी इमारतों में
भटकते हैं आदमी।
आदमी के भीतर यंत्रों का
नाचता संगीत सुनाऊँ।
आओ ! अंतरंग एकांत में ले जाऊं।
जीने का संघर्ष जहाँ
रोटी ने छीना है ,
आनंद के बिंदु पर
सुविधाओं का परदा झीना है।
कबूतरों के दबड़ों में दुबका है आदमी।
सुख के साधनों पर
नियमों की नीतियां सवार हैं
राजनीति के चक्रव्यूह की
वीथियां दुर्निवार हैं --
मारीचिका में तड़पते
हिरने की कथा सुनाऊँ।
आओ ! तुम्हें सभ्यता के
एकांत में ले जाऊं। …………… अरविन्द

संगी केवल गीत हैं

मित्र सारे दूर और संगी केवल गीत हैं
प्रीत की यह रीत है मुखर मौन मीत है।
शब्द सारे चुप व्याकरण प्यारे लुप्त है ,
कौन कहाँ शुद्ध , कौन हुआ विरक्त है।
संधि और समास के भेद सब नष्ट हुए
न्यास का विपरीत विन्यास अनुरक्त है ।
भाषा विभाषा हुई , बोल बोली बोलते .
कहाँ तक कहूँ सब मौन अभिव्यक्त है। ……… अरविन्द





शनिवार, 10 मई 2014

इश्क़

इश्क़ तो खुदा की नियामत ,
इश्क़ खुदा का नूर है।
इश्क़ तो खुद ही खुदा ,
एकत्व ही भरपूर है।
द्वैत -मुक्ति का किवाड़
अद्वैत सुख का द्वार है।
मैं और तू का पर्दा हटा ,
इश्क़ पहरेदार है।
वह बली किस्मत का बन्दे
इश्क़ जिसने पा लिया ,
जगत की फ़िर क्या जरुरत ,
खुद खुदा ही हो लिया। ………… अरविन्द