गुरुवार, 22 मई 2014

आस्ट्रेलिया ---४

आस्ट्रेलिया ---४
कल यहाँ बादल थे। सारी  रात बरसते रहे। यहां अक्सर बरसात तो होती ही है ,पर मौन बरसात है। मुझे बरसने की आवाज तो सुनाई नहीं दी ,सुबह उठा तो पता चला कि रात होले -होले  बरसती रही है। चुपचाप अभिसारिका सी, विरह भीगी --मौन और सुबकती सी।
मुझे सुबह जागते ही आकाश को देखने की इच्छा होती है। हालाँकि आज बादल के टुकड़े आकाश में घूम रहे थे ,जैसे हमारे यहां बच्चे गलियों में घूमते रहते हैं। तो भी आज आकाश मुझे हँसते हुए दिखाई दिया। ऐसे ही जैसे विराट मुस्कुरा रहा हो ,परमात्मा भी तो खुले आकाश सा मुस्कुराता है। वही आकाश यहां भी वैसा ही है जैसा मेरे यहां है। कोई परिवर्तन नहीं। मुस्कुराता हुआ ,निरभ्र ,चमकता हुआ ,बेलौस ,बिना किसी अंतर्द्वंद्व के। चिरपरिचित सूर्य ने भी उसी प्रकार मेरे जल को स्वीकार किया जैसे वह करता है। कुछ भी तो अपरिचित नहीं। न रात ,न बरसता हुआ जल ,न भीगती हुई  धरती ,न पेड़ पौधे ,न ही चहकती चिड़ियाँ --कुछ भी तो अपरिचित नहीं। सामने के घर से कुछ सफ़ेद कबूतर उड़ते हैं। पड़ोस में कुत्ता भी भौंकता है ,पर इस कुत्ते की आवाज ऑस्ट्रेलियन है। यह पंजाब के कुत्तों जैसा नहीं। यहां के लोगों की तरह कुत्ते भी सफाई पसंद हैं। मुझे कोई भी आवारा कुत्ता सडकों पर घूमता हुआ नहीं मिला। अजब देश है ,पशु भी हैं ,पर सभ्य। हमें अपरिचित दृष्टि से देखते तो हैं ,परन्तु भौंकना चाहते हुए भी भौंकते नहीं --सभ्य।
शांति और मौन यहां की आदत लगती है। कहीं कोई शोर नहीं। चुप -चाप कारें दौड़ रही हैं ,पर हॉर्न की कोई आवाज नहीं। लोग मुस्कुरा कर पास से गुजर जाते हैं ,बस ,हाथ भर हिलाते हैं। शायद यही हालचाल पूछने का तरीका है। अच्छा है। कोई किसी को रोकता नहीं। हमारी तरह सड़क पर रुक कर पूरे  घर का ,पास पड़ोस का कोई हाल नहीं पूछता। समय व्यर्थ गंवाना नहीं चाहते। सब बहुत  व्यस्त हैं। काम पर जाना ,निरन्तर काम में लगा रहना ,शाम को लौटना और अपने -अपने घर में घुस जाना ,यहां की दैनिक दिनचर्या है।
     हमारे घर में सब्जियों की आवश्यकता थी। राजन सब्जी लेने के लिए जाने लगे तो मुझे भी साथ ले गए। अपने घर में मैने सब्जी खरीदनी छोड़ी हुई है। हमारे यहां ,होशियारपुर में सब्जी वाले गलियों में ही घूमते हुए सब्जी दे जाते हैं। यहां सब्जी के लिए मॉल में जाना जरूरी है। मेरे मन में भी जाने की इच्छा थी। मैं भी यहां के मॉल को देखना चाहता था ,सो तैयार हो गया।
          खुली सडकों पर दौड़ती हुई कार कब मॉल में पहुँच गयी --पता ही नहीं चला। मैं तो साफ -सुथरी सड़कें देख रहा था। सुव्यवस्थित यातायात देख रहा था --कब मॉल आ गया मुझे पता ही नहीं चला।
           हम एक बहुत लम्बे -चौड़े हाल के बाहर खड़े थे। चमचमाती न्यून लाइट्स चमक रही थीं। लोगों की भीड़, बड़े आराम से , बिना किसी धक्के के आ जा रही थी। स्त्रियां पुरुष ,बच्चे बूढ़े --सभी। कोई किसी को धक्का नहीं मारता ,कोई चुहलबाजी नहीं ,कोई छींटाकसी नहीं ।  हमारे यहां इतनी भीड़ हो और कंधे से कन्धा न भिड़े ,स्वाद ही नहीं आता। हम धक्का पसंद लोग और यहां एक निश्चित दूरी पर चल रही सभ्यता।
        सब्जी मंडी में पहुँचते ही मैं अचंभित था। मेरे सामने साफ सुथरी ,हरी भरी ,ताजे फलों और सब्जियों की बहुत सुन्दर हाट। हमारे यहां की सब्जी मंडी कभी भी इतनी सुन्दर ,इतनी साफ़ और इतनी ताज़ी नहीं हो सकती। कोई दुकानदार नहीं ,लोग मनपसंद सब्जियां खुद ही चुन रहे हैं। ढेरों के ढेर सब्जियां।
   मैं भी भीतर आया। केले देखे --ऐसे केले , किसी नवजात शिशु की स्वस्थ कोमल बाहँ जैसे। ऱसभरी मुझे टमाटर लगी। आलू --लाल ,गुलाबी ,पीले ,मटमैले ,मोटे और सुन्दर। राजन सब्जियां खरीदने में व्यस्त थे और मैं खोया हुआ था। एक भी पिलपिला आलू मुझे ढूंढने पर भी नहीं मिला। गोभी ,हरी भरी --मुझे ऐसे लगी जैसे  किसी सुंदरी के जूडे को  ही सजा कर रखा हो। गोल गोल फ़ुटबाल जैसी हरी भरी पत्तगोभी। कच्ची -लम्बी सफ़ेद मूलियाँ ,स्पंज जैसे सफ़ेद कुक्कुरमुत्ते ,रक्तिम लाल तरबूज ,सुगन्धित मोटे  खरबूजे , रेशम जैसी कोमल भिन्डी। मैं हाथ लगा कर छू छू कर देख रहा था।
ऑर्गेनिक फलों और सब्जियों की कतारें मेरे सामने थी।
        हैरान मन फिर अपने पंजाब की सब्जी मंडी में, न चाहते हुए भी, पहुँच गया। यूरिया से उपजी बीमार सब्जियां मेरे सामने थीं। टीके लगे फल मुहं चिड़ा रहे थे। दुकानदारों के लालची चेहरे घिन उपजा रहे थे। भाव तौल के  बाद माप तौल के कपटी तराजू मुझे चिड़ा रहे थे।
   इतने में राजन जी ने मेरा ध्यान भंग  किया। वे सब्जियां खरीद चुके थे। और मैं अपने देश के दुराचारी व्यापार के विषय में सोचते हुए उनके पीछे -पीछे घर के लिए चल दिया। मेरा मन चाहता था की इन व्यापारियों को इनके ईमानदार व्यापार के लिए शुभ कामनाएं दूँ। पर वे सभी बेपरवाह अपने कर्म में तल्लीन दिखे।
      समाज और जनता के प्रति व्यापारियों का यह उत्तरदायित्व मुझे अपने देश में कब दिखाई देगा ?--यही एक प्रश्न मन में कुलबुला रहा था। …………अरविन्द

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें