आदमी
केवल पांच तत्व का
पुतला ही नहीं ,
कामनाओं और अंधी आशाओं का केवल पांच तत्व का
पुतला ही नहीं ,
सत्ता के लोभी
विकृत राजनीतिज्ञ ,
मोह ,ममता,अज्ञान ,
मनुष्य नुमा चेहरे ,
मृत पुरुषों की
मिटटी में गड़ी अस्थियों ,
कब्रों और मटियों के इर्दगिर्द
चक्कर लगाते हैं।
पुरुषार्थ को
वासनाओं के कुँए में डुबो कर
वासनाओं के कुँए में डुबो कर
मृत आदमियों की अस्थियों से
इच्छा पूर्णता का वर
चाहते हैं।
मिटटी के पुतले
मिट्टी पर नाक रगड़ते
मिट्टी में मिल जाते हैं
परमात्मा जीवित है
आत्मा के अंतस में
जागता है---देख नहीं पाते हैं।
सद्गुरुओं की खेती को
पाखंडी पशु चर जाते हैं। …………… अरविन्द
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