मंगलवार, 27 मई 2014

आदमी

आदमी
 केवल पांच तत्व का
 पुतला ही नहीं ,
कामनाओं और अंधी आशाओं का
बंधा सरोवर है।
जीते जागते मनुष्य ,
धर्म के तथाकथित प्रचारक,
देवताओं की आरतियों के
मशीनी संवाहक ,
गद्दियों पर बैठे
मूढ़ मन उपदेशक ,
पिच्छल्गू सेवक ,
खोखली संतानें ,
सत्ता के लोभी
विकृत राजनीतिज्ञ ,
मोह ,ममता,अज्ञान ,
मलीनता की स्त्री मूर्तियां
कामनाओं की अंधी भीड़ से भरे
मनुष्य नुमा चेहरे ,
मृत पुरुषों की
मिटटी में गड़ी अस्थियों ,
कब्रों और मटियों के इर्दगिर्द
चक्कर लगाते हैं।
पुरुषार्थ को
 वासनाओं के कुँए में डुबो कर
मृत आदमियों की अस्थियों से
इच्छा पूर्णता का वर
चाहते हैं।
मिटटी के पुतले
मिट्टी पर नाक रगड़ते
मिट्टी में मिल जाते हैं
परमात्मा जीवित है
आत्मा के अंतस में
जागता है---देख नहीं पाते  हैं।
सद्गुरुओं की खेती को
पाखंडी पशु चर जाते हैं। …………… अरविन्द



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