मंगलवार, 20 मई 2014

आस्ट्रेलिया ------3

आस्ट्रेलिया ------3
आज मैलबर्न के आकाश में बादल छाए हुए हैं ,लहराती हुई हवा में वृक्ष मुस्कुरा रहे हैं ,थोड़ी -थोड़ी ठण्ड भी है ,हवा का सुखद स्पर्श मेरे बालों को छेड़ रहा है और मैं ओवाटा विक्टोरिया की उस गली में घूम रहा हूँ जहाँ गायत्री ,ईशान और राजन का घर है। मीठी -मीठी बूंदाबांदी हो रही है मेरी पत्नी कल्याणी भी इस फुहार भीगी शाम में ठिठुरती हुई ओवाटा की इस साफ़ सुथरी गली में सैर कर रही है। मेरा मन भारत और आस्ट्रेलिया के सामाजिक प्रशासन की तुलना में व्यस्त है। एक मेरा देश है जिसके पास अत्युन्नत सांस्कृतिक सम्पदा है ,षड्ऋतुयों के क्षणे क्षणे नवता को प्रकट करता सौंदर्य है , ऋषियों की परम -प्रज्ञा की परादृष्टि विद्यमान है , संतों का सार्वजनीन चिन्तन और परम -सुख की कामना है ,वैदिकता की वेदी पर आयत्त औपनिषदिक प्रज्ञा से परिवेष्टित ब्रह्म के निराकार और साकार रूप का अभौतिक परम तत्व विद्यमान है ,सामाजिक जीवन में विविध उत्सवों का सामूहिक उल्लास हमारी नैसर्गिक संपत्ति है ,सर्वान्तर सुख के हम सर्वत्र आनंद कामी हैं ,और भी बहुत कुछ ऐसा है जिसे हम अपने गौरव की अहं शीला का आधार मान कर आत्म -प्रफुल्लित हो रहे हैं ,तो भी हम पिछड़े हुए हैं , हमारी प्रशासनिक अव्यवस्था की अमावस्या और अन -अनुशसित स्वच्छंदता ने हमारे आंतरिक और बाह्य सौंदर्य -सुख का हनन कर लिया है ,हमारी अस्मिता अस्वस्थ राजनैतिक दुर्नीतियों के दोहन का शिकार हो रही है ,सामूहिक अकर्मण्यता हमारी सत्ता का शोषण कर चुकी है , हम स्वयं कुछ भी रचनात्मक संकल्प से रहित हैं ,दिशाहीन और किंकर्तव्यविमूढ़ हो चुके हैं ,अव्यवस्था में जीन हमारी नियति बन चुकी है ---यहां आकर ऐसा मुझे लग रहा है।
आस्ट्रेलिया के मैलवर्ण में पहला कदम रखते ही मुझे यहां की प्रशासनिक सुव्यवस्था के दर्शन हुए। स्वच्छता ,सौंदर्य ,समन्वय ,समता और सुख प्रकट रूप में दिखाई दिए। जैसे -जैसे इस नगर में प्रवेश करता गया वैसे -वैसे साफ़ -सुथरी गलियों के सौंदर्य ने खुली बाहों से मुझे स्वीकार किया। बिछी हुई सड़कें ,जिन में किसी भी तरह के गड्ढे के पैबंद नहीं थे ,उन सडकों ने हमारा स्वागत किया। नगर से दूर निकल कर जब आस्ट्रेलिया के ग्रामीण प्रदेश में पहुंचे, तो वहां की सड़कें और गलियां भी खूबसूरत मिलीं --स्वच्छ ,सुन्दर ,चौड़ी और हरियाली भरी। किसी भी गली में मुझे कहीं गंदगी या कूड़ा नहीं दिखा। किसी भी सफाई कर्मचारी के दर्शन नहीं हुए। कहीं कोई सड़क बुहारते हुए नहीं मिला। इतना व्यवस्थित प्रदेश ! न कही गंदगी ,न रद्दी कागजों के टुकड़े ,न सब्जियों के ,फलों के छिलके ,न मिटटी के ढेर ,न उड़ते हुए लिफ़ाफ़े ,न कहीं रुका हुआ पानी ,न कीचड़।
साफ़ सुथरी सडको पर निर्द्वन्द्व दौड़ती हुई कारें , प्रसन्न चेहरे ही दिखाई दिए। अचानक फिर मुरझाया हुआ पंजाब मेरी आँखों के सामने आ गया। गड्ढों से भरी सड़के ,गिरते -पड़ते बच्चे और बूढ़े ,ठोकरें खाती स्त्रियां ,कीचड़ उछालती दौड़ती कारें ,स्कूटरों की अनियंत्रित कतारें , धूल उड़ाती बसें ,गंदगी में मुहं मारते कुत्ते ,गायें, दीवारों की ओट में लघुशंका करते बेशर्म लोग ,बे लगाम यातायात ----सब याद आने लगा।
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी ---इस पंक्ति का वास्तविक अर्थ यहां आकर ही समझ आया। गंदगी ,कुसंस्कार ,जाहिलता ,मूर्खता ,दुष्टता इत्यादि चीजें सदियों तक पीछा नहीं छोड़ती। तो हम कैसे सुधर जाएँ।
जिस देश की जनता नीतिहीन ,दम्भी ,स्वार्थी ,झूठे ,मक्कार, देश की संपत्ति के अपहर्ता लोगों को अपने नेताओं के रूप में चुनते हों ,वहां स्वच्छता ,सुख ,सौंदर्य ,समता और समन्वय हो ही नहीं सकता। यही नरक है। ………… अरविन्द --------------------क्रमशः। …

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