ढोल बजे ,मंजीरा बजे और बजे शहनाई
पंजाबी मन में उमंग लोहरी की है छाई।
मालवा के आकाश में रंग बिरंगी पतंग ,
जीवन यौवन हुलसता इस लोहरी के संग।
आई प्रियतम अंगने सुन ढोलक की थाप,
गिद्दे भीतर झलक रही सोहनी की सौगात।
चारपाई पर रांझणा लुक छिप करता घात ,
बड़े बूढ़ों की भीड़ में अँखियन करता बात ।
उत्सव हमारे उल्लास के नित हमें जगावें
जीवन रस को बाँट लो ,नाहीं तो पछतावें। ………अरविन्द
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