सागर अपना घर है बंधु
आकाश हमारी मंजिल।
ऊपर उठना ,ऊपर उड़ना
हम सब हैं निर्दम्भिल ।
जीवन तो अविरल यात्रा
जीवन अविरल झरना।
जीवन उन्मुक्त गगन में
अविरल ऊपर उड़ना।
हम क्यों बंधे जगत में
प्यारे ,यह नहीं है अपना।
उस पार हमारा घर है बंधु ,
नहीं रुक सकता उड़ना ,उठना। ………… अरविन्द
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें