इश्क़ तो खुदा की नियामत ,
इश्क़ खुदा का नूर है।
इश्क़ तो खुद ही खुदा ,
एकत्व ही भरपूर है।
द्वैत -मुक्ति का किवाड़
अद्वैत सुख का द्वार है।
मैं और तू का पर्दा हटा ,
इश्क़ पहरेदार है।
वह बली किस्मत का बन्दे
इश्क़ जिसने पा लिया ,
जगत की फ़िर क्या जरुरत ,
खुद खुदा ही हो लिया। ………… अरविन्द
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