विषय और वस्तुओं पर
निर्भर रिश्ते
रिश्ते नहीं व्यापार होते हैं।
मन की स्वीकृति और
निस्वार्थ
अपनापन रिश्तों के उपहार होते हैं।
अहं छोड़ हाथ थामो मित्र ,
तब रिश्ते --
भार नहीं होते हैं।
खुले आकाश की तरह
जो बाँध न सकें
वे ,रिश्ते नहीं ,बस ,
भार होते हैं। ………… अरविन्द
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