बुधवार, 20 फ़रवरी 2013

पिपासा जब हो जाये जिज्ञासा तब होता प्रयास
जब होता प्रयास पूर्ण काम हो पूर्ण हो  विश्वास .
निर्मल मन की प्रार्थना का  प्रतीक्षा  मूल उत्स
सबके भीतर एक विराजे देखे सम्पूर्ण सिक्त .
प्राप्ति और अप्राप्ति तो है छोटी  सी ही  बात
बस केवल पिपासा प्रतीक्षा प्रयास प्रेम विश्वास ...अरविन्द

मंगलवार, 19 फ़रवरी 2013

बाकी है .

न तोड़ो बेदर्दी नेह का यह प्यारा सा नाता
कि अभी बेजुबान की जान में जान बाकी है .
न तोड़ो खिलते हुए गुलाब की पंखुडियां यूँ
कि अभी इस बाग़ में वसंत बहार  बाकी है .
 न बांधो सागर को अपने  छोटे से  लोटे  में
कि अभी पुन्नयाँ का उमड़ता उफान बाकी है।
न भागो जिन्दगी  की  स्थूल कठिनाइयों  से
कि अभी संघर्ष के सौन्दर्य का तूफ़ान बाकी है .
न तड़फो ,न भटको ,न झुन्झलाओ न तरसो
कि अभी जिन्दगी में यौवन का विहान बाकी है .....अरविन्द


गुरुवार, 14 फ़रवरी 2013

जिनके हम बाप हैं अभी .

हमें   पढ़ाने  वे लग पड़े  जिन्हें पढाया  था  कभी
गोदी में बैठ दाढ़ी खींचते जिनके हम बाप हैं अभी .

बदहाल हो  चुका है हाल  हमारे विद्या  मंदिरों  का
मजबूरी नहीं यहाँ, तो भी गधे को बाप कहते हैं सभी .

न छंद है न भाषा जहाँ, न तुक का ज्ञान  है न भाव है
कवि के रंगीन परों को कुक्कडों सा नोचते हैं वे सभी .

समझदारी से नहीं जिया जिन्होंने कभी एक भी पल
सूरज की ओर पीठ कर बैठी है कौओं की पांत अभी .

दूसरों की अर्जित मलाई पर इन्होने हाथ फेरा है सदा
मौकापरस्त चापलूसों की लम्बी कतार है लगी हुई ....अरविन्द

सोमवार, 11 फ़रवरी 2013

फिर कविता लिखवाते हो

फिर कविता लिखवाते हो
जीवन की सच्चाई बता कर
शब्दों को नचवाते हो .,
फिर कविता लिखवाते हो ,

यहाँ नहीं है कुछ किसी का
फिर भी सब  अपना सा है .
कोई नहीं किसी को लूटता
माया का भ्रम ही भ्रम  है .
कर्तव्य हमारी है नियति 
रोते और मुस्काते हो
फिर कविता लिखवाते हो ..

सुख दुःख सारे, बहुत प्यारे
बंधू सखा वे मित्र हमारे
आशा निराशा  पल्लू थामे
हम सबको बहलाते सारे
फिर बच्चों की भांति क्यों
कभी कभी बिखलाते हो
फिर कविता लिखवाते हो .

आओ प्यारे जीवन जाने
इन्द्रधनुषी रंगों को मानें
अपने अनुभव के सागर में
गहरी डुबकी लेकर जानें
सत्य छुपा जो भीतर तल में
उसे उघाड़ें उसको जानें
संचित किया जो अब तक हमने
बांटें उसे सबको दे डालें
नहीं कोई पराया जग में
फिर क्यों पछताते हो .
फिर कविता लिखवाते हो ..

खिलखिलाते बच्चे सारे
हमें दुलारें, हमें पुकारें
आँखों में आशा को लेकर
हमें निहारें ,हमें सुधारें .
हम उनकी छोटी आशा का
बनें किनारा और सहारा
प्रभु तुम इसी तरह लहराते हो
फिर कविता लिखवाते हो .......अरविन्द