सोमवार, 11 फ़रवरी 2013

फिर कविता लिखवाते हो

फिर कविता लिखवाते हो
जीवन की सच्चाई बता कर
शब्दों को नचवाते हो .,
फिर कविता लिखवाते हो ,

यहाँ नहीं है कुछ किसी का
फिर भी सब  अपना सा है .
कोई नहीं किसी को लूटता
माया का भ्रम ही भ्रम  है .
कर्तव्य हमारी है नियति 
रोते और मुस्काते हो
फिर कविता लिखवाते हो ..

सुख दुःख सारे, बहुत प्यारे
बंधू सखा वे मित्र हमारे
आशा निराशा  पल्लू थामे
हम सबको बहलाते सारे
फिर बच्चों की भांति क्यों
कभी कभी बिखलाते हो
फिर कविता लिखवाते हो .

आओ प्यारे जीवन जाने
इन्द्रधनुषी रंगों को मानें
अपने अनुभव के सागर में
गहरी डुबकी लेकर जानें
सत्य छुपा जो भीतर तल में
उसे उघाड़ें उसको जानें
संचित किया जो अब तक हमने
बांटें उसे सबको दे डालें
नहीं कोई पराया जग में
फिर क्यों पछताते हो .
फिर कविता लिखवाते हो ..

खिलखिलाते बच्चे सारे
हमें दुलारें, हमें पुकारें
आँखों में आशा को लेकर
हमें निहारें ,हमें सुधारें .
हम उनकी छोटी आशा का
बनें किनारा और सहारा
प्रभु तुम इसी तरह लहराते हो
फिर कविता लिखवाते हो .......अरविन्द



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