आज दीपावली है , ज्योतिपर्व है ,आलोक उत्सव है ,प्रकाश -उपासना का अर्चन
,पूजन ,वन्दन है . कार्तिक मॉस क़ी अमानिशा में ,जब हाथ को हाथ ना सूझता
हो,दिशाओं को जानना दुष्कर हो --उस घने अन्धकार में किसे प्रकाश पर्व
मनाने की सूझी होगी --सत्य और तथ्य अज्ञात हैं .जय -पराजय की रक्त -रंजित
कथाओं को रस लेकर सुनाने वाला इतिहासकार भी चुप है .पता नहीं कितने ऐसे
मानवीय कल्याण के प्रयास ,जानबूझ कर प्रकट नहीं किये गये ...हमारा इतिहास
एकांगी है ,जातिओं के गौरव हीन अहंकार की अपूजनीय घटनाओं से परिपूरण है
.इतिहास में उस आदमी के सत्प्रयास को संकलित नहीं किया गया --जिसने मानवीय
पथ को आलोकित किया .
मानवीय प्रज्ञा का यह प्रकाश उत्सव अन्धकार के
विरुद्ध मानव का देदीप्यमान संघर्ष पर्व है हिन्दू संस्कृति का लोककल्याण
कारी मानवीय यज्ञ है .राम -कथा भी इस प्रकाश पर्व से जुडने का लोभ संवरण
नहीं कर पाई ,क्योंकि राम भी मानुषी सभ्यता पर आच्छादित घनीभूत आतंक और
निराशा के विरुद्ध प्रथम मानवीय संघर्ष के प्रथम महामानव हैं ...भगवत्ता को
अर्जित करने के लिए अन्धकार के विरुद्ध खड़े होना मानव का प्रथम प्रयास
होना चाहिए --यही राम कहना चाहते हैं ...
.इसी प्रकार उस व्यक्ति का भी पता नहीं चलता जिसने इस प्रकाशित पर्व में पटाखे फोड़े ,प्रदूषण को फैलाने का व्यूह रचा .परिणामतः
आज सभी संस्थाएँ इस कलुष को धोने में असमर्थ हैं ...ना कोई संत ,ना कोई
नेता ,ना समाजसुधारक ,ना शिक्षा ..कोई भी इस प्रकाश पर्व पर छाए धुऐं को
नहीं धो रहा है .....धुआं हमारी ज्योति का भक्षण न कर पाए हमें सोचना होगा
.....अरविन्द
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