सोमवार, 12 नवंबर 2012

बुल्ले शाह की एक काफ्फी

मित्रो ! आज बुल्ले शाह की  एक काफ्फी पढे --
इल्मों बस करीं ओ यार !
इल्म ना आवे बिच शुमार ,इक्को अलफ़ तेरे दरकार .
जांदी उमर नहीं इतबार ,इल्मों बस करीं ओ यार .


पढ़ पढ़ लगावें ढेर ,कुरान किताबां चार चुफेर .
गिरदे चानन बिच अनेर ,बाझों रहबर खबर ना सार .

पढ़ पढ़ शेख़ मशाइख होया ,भर भर पेट नींदर भर सोया .
जांदी बार नयन भर रोया ,डुबा बिच उरार ना पार .

पढ़ पढ़ इल्म होया  बोराना बे इल्मां  नू लुट लुट खाना
इह की कीता यार बहाना , करैं नहीं कदी इनकार

पढ़ पढ़ मुल्लां होय काजी अल्लाह  इल्मां बाझों राज़ी
होवे हिरस दिनों दिन ताज़ी ,नफ़ा नीअत  बिच गुजार .

बुल्ला ना राफ़्जी है ना सुन्नी ,आलम फ़ाज़ल ना आलम जुंनी .
इक्को पड़िया इल्म लदुनी , वाहिद अलिफ़ मीम दरकार .

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