शुक्रवार, 30 नवंबर 2012

प्रभु अब तो कृपा करो मेरे नाथ !
माया संग बेहद नाचा हूँ कछु नहीं आया हाथ .
योग क्षेम सब तेरे हाथों तव चरणों पर माथ .
भव सागर में डूब उतरता अस्थिर है सब साथ .
न अपना न किछु पराया अग  जग नाहीं भात .
सुत वित नारी कर्म अकर्म कछु  नाहीं  सुहात .
कहे अरविन्द अब किरपा कीजो देवो अपना हाथ
पांच पुतरिया अहंकार छोड़ा तव चरनन पर नाथ ....

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