मंगलवार, 19 फ़रवरी 2013

बाकी है .

न तोड़ो बेदर्दी नेह का यह प्यारा सा नाता
कि अभी बेजुबान की जान में जान बाकी है .
न तोड़ो खिलते हुए गुलाब की पंखुडियां यूँ
कि अभी इस बाग़ में वसंत बहार  बाकी है .
 न बांधो सागर को अपने  छोटे से  लोटे  में
कि अभी पुन्नयाँ का उमड़ता उफान बाकी है।
न भागो जिन्दगी  की  स्थूल कठिनाइयों  से
कि अभी संघर्ष के सौन्दर्य का तूफ़ान बाकी है .
न तड़फो ,न भटको ,न झुन्झलाओ न तरसो
कि अभी जिन्दगी में यौवन का विहान बाकी है .....अरविन्द


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