गुरुवार, 20 मार्च 2014

आत्यंतिक सुख

जो रचना करता है वह ,भाग्य ,देवता या परिस्थिति को दोष देते हुए अवसर की प्रतीक्षा नहीं करता। वह अपनी इच्छा ,प्रयास ,और सूक्ष्म विवेक की जादुई छड़ी से सुअवसरों का लाभ उठा लेता है या उन्हें उत्पन्न कर लेता है।
२ , भूल करना और गलत मार्गों पर चलना एक क्षणिक कमजोरी है। यदि हम अपने अनुभवों से सीख लें ,तो जिस धरती पर हम गिरते हैं उसी धरती का उपयोग सहारे के रूप में पुनः उठने के लिए कर सकते हैं।
३ ,अगर हम अपनी सक्रिय इच्छा शक्ति के साथ किसी विचार को पकड़े रखते हैं ,तो यह अंततः साकार रूप धारण कर लेता है।
४ , अपनी आत्मा से प्रकाश प्राप्त करना सीखें ,वाही हमारा पहला और अंतिम ईमानदार गुरु है ,जो हमें ठगता नहीं।
५ , शान्ति में सुख है। इसे सम्भालना सीखना चाहिए। उत्तेजना हमारे स्नायविक संतुलन को अस्तव्यस्त कर देती है और मानसिक अशांति का कारन बनती है।
६ , चिंता व्यक्ति के भीतर के संसार को अधिक गहरा कर देती है। तनाव रहित और शांत शरीर मानसिक शान्ति को आमंत्रित करता है  ।
७ ,अगर हम मानते हैं कि परमात्मा हमारे भीतर है ,तो डर कैसा  और क्यों ?
८ , हम वर्त्तमान में कम ,भूत और भविष्य में अधिक जीते हैं। यह जीना नहीं ,जीना वर्त्तमान है।
९ , सुखी रहना और सुख देना चाहते हो तो ,चिड़चिड़े मत बनो।
१० ,भयभीत चित तात्कालिक सुख और लाभ के लिए छोटे छोटे समझौते कर लेता है,जिससे आत्यंतिक सुख और आत्मिक आनन्द से वंचित रह जाता है।
                  -------- अरविन्द पराशर

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