शुक्रवार, 14 मार्च 2014

---------अरविन्द वाणी -------

जब मन शान्त होता है ,तो कितनी आसानी से ,सहजता से ,शीघ्रता और कितनी सुंदरता से प्रत्येक वस्तु को समझ लेता है।
2 . ज्ञान बाहर से भीतर नहीं भरा जा सकता ;यह व्यक्ति की आंतरिक ग्रहणशीलता की शक्ति एवं क्षमता है जो निर्धारित करती है कि मनुष्य सच्चे ज्ञान को कितनी मात्रा  में और कितनी शीघ्रता से ग्रहण कर सकता है।
3 . अपनी समस्या से बाहर निकलने का कोई न कोई रास्ता हमेशा होता है ;यदि हम स्पष्टता से विचार करने के लिए समय लगाएं ,केवल चिंता करने की अपेक्षा चिंता के कारण से छुटकारा पांने  पर विचार करें।
4 . सत्य वास्तविकता से सम्पूर्ण तदनुरूपता है।
5 . अनुभव करें कि हमारी श्रद्धा युक्त मांग के परदे के ठीक पीछे परमात्मा हमारी आत्मा के मौन शब्दों को सुन रहे हैं।
6 . हमारी अपनी अन्तरात्मा में एक दिव्य विवेक शक्ति विदयमान है ,सम्पर्क करना सीखें।
7 . भय ,क्रोध ,उदासी ,पश्चाताप ,ईर्ष्या ,शोक ,घृणा ,असंतोष हमारे स्नायविक विकार हैं ,इन्हें निश्चियात्मक होकर हटाया जा सकता है।
8 . प्रगति ,उन्नति और अभ्युदय का एक रहस्य आत्म -विश्लेषण है। अंतर्निरीक्षण के दर्पण के द्वारा हम मन के प्रत्येक कोने में झांक सकते हैं और अपनी त्रुटियों, अक्षमताओं को शक्ति और सामर्थ्य में बदल सकते हैं।
9 ज़िस दिन मनुष्य अपनी इच्छा को देखना सीख जाएगा उस दिन वह इच्छा को जीतना और इच्छातीत होना भी सीख जाएगा।
10 . अतीत को भूलना ही उन्नति के रास्ते पर पग धरना है।
                                                 ---------अरविन्द वाणी -------

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