चंद्रमा के पास चलें प्रिये !
कुछ चाँद को निचोड़ेंगे
रस है छिपा भीतर
उस अमृत को बिलो देंगे।
रात्रि जागरण के
इस उत्सव में
चाँद -
अंतर नदी डुबो देंगे।
रस पर है
अपना भी अधिकार
यह
बुढ़िया जो बैठी है चाँद में
उसे भी झिझोड़ेंगे।
चलो चाँद के पास प्रिये !
गोलाईयाँ इसके मौन
हम समो लेंगे। ............. अरविन्द
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