आँख कहीं ओर और ध्यान कहीं ओर है
भक्ति की भीड़ में पाखंडियों का शोर है।
उपदेश देना आजकल है अच्छा व्यापार
धन बल सेवा सम्पदा मिलें सुख अपार।
सुनहले कपडे पहन के सुनो सबकी बात
हार गले में पहन कर बांटो सब परसाद।
ऊँचे आसन मंच सजो मुस्काओ अभिराम
अहंकार के पहाड़ चढ़ धिक्कारो गुण ग्राम ।
सत्संगियों से नित कहो तजो तजो ये गेह
माया तजो ,काया तजो मिथ्या जीवन नेह।
आसन पास रखो टोकरी बरसे धन का मेह
लुटे पिटे असंतुष्ट सब करो गुरु चरण स्नेह।
कैसे ये सब संत हैं रचें नाम दान की माया
झूठे शब्दजाल में भोला मानव है भरमाया।
सीधी सच्ची बात कहूं समझें नाहीं ये लोग
गुरु सब भोग है भोगते शिष्य रोग व सोग । ……… अरविन्द
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