हल्का फुल्का सोचना भी मन के लिए बहुत अच्छा होता है। आओ कुछ हल्का
फुल्का सोचें। क्या कभी आपने विचार किया है कि आधुनिक संत अपने नाम संज्ञा
के आगे अनेक विशेषण क्यों लगाते हैं ?हालाँकि विशेषण भी तो नाम ही हैं। वे
कहेंगे कि उनके भक्तों ने ही लगा दिए ,यह सफ़ेद झूठ है। हम जो ठीक नहीं है
,केस भी क्यों न हो उसे स्वीकार क्यों करें ?ये विशेषण देखिये ---परम संत
,स्वामी ,अनंत श्री विभूषित ,महाराज ,महाराजाधिराज ,प्रज्ञा -पुरुष ,स्व
नाम धन्य इत्यादि। कभी इन विशेषणों की अर्थ संगति के विषय में आपने विचार
किया है ? नहीं किया ,तो अब करें। इसी प्रकार इंटरनेट पर गुरु मां लिखें और
एंटर करें --सैंकड़ों गुरु माँ उपलब्ध हैं। जबकि भाषा और व्याकरण में यह
शब्द है ही नहीं। माँ केवल माँ है ,उसे गुरु कहलवाने की क्या आवश्यकता ?वह
तो गुरु की भी माँ है। आश्रमों में ऋषि पत्नियों को बालक विद्यार्थी गुरु
माँ कहते थे --वे बालक थे और सन्दर्भ ग्राम्य होता था ,जहाँ भाषा नहीं
,बोली की प्रधानता थी। बोली का कोई व्याकरण नहीं होता। तो इन स्त्रियों को,
जो स्त्रियां गले में माला डाले ,तिलक लगाये ,कुछ उपदेश देने के लिए ,किसी
परम संत या स्वामी के समीप हैं --वे गुरु माँ कैसे हो गयीं? उनमे कौन - सी
ऐसी गुरुता है ,भारीपन है जिसे केवल माँ शब्द व्यक्त नहीं कर सकता था कि
उन्हें माँ की शुचिता को ढकने के लिए गुरु शब्द की आवश्यकता पड़ गयी ? है न विचारणीय।
शब्द बहुत खतरनाक होते हैं ,वे वह भी कह जाते हैं जो हम कहते नहीं ,छिपाते हैं। संत अपने आप में परम है फिर परम के भार को क्यों ढोना ? सबको कहें कि हलके हो जाओ ,सब भार उतार दो ,लेकिन खुद परम के भी परम भार को कितनी
विनम्रता से हम उठा लेते हैं। है न हैरानी ?स्वामी को देख लो --अपने सब काम
दूसरों से करवाते हैं,स्वयं पर स्वामित्व नहीं ,भक्त कहें यहाँ बैठो ,अब
उठो --पर स्वामी कहला कर इठलाते हैं। कभी सोचिये आप। हम कितने दीन हीन हैं।
अभी तक हमने राजा ,महाराजा कहलाने की इच्छा का ही त्याग नहीं किया और खुद
को निस्पृह कहते हैं। क्या यही हमारा अध्यात्म है। अगर यही है तो अध्यात्म
में शब्दों की मनोवैज्ञानिक विवेचना तो हमें करनी ही चाहिए। उपनिषद् कहता
है कि सत्य को हिरण्य ने ढका हुआ है। देखना है तो इस के ढक्क्न को उठाना ही
होगा। फिर चेहरा कैसा होगा ?आप खुद सोचिये। मैं तो हल्का फुल्का सोच रहा हूँ। आवारा चिंतन करता हूँ। ………अरविन्द
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें