शुक्रवार, 17 जनवरी 2014

अब जब भी कभी गुलाब देखेंगे

अब जब भी कभी गुलाब देखेंगे
तुम्हें ही वहाँ हम जनाब देखेंगे।
गुलाबी पत्तियां मुस्कुरायीं होंगीं
माथा चूम कर तेरा लहराई होंगी।
मुस्कान मीठी की झलक पा कर
गुलाब  धीमे से शरमायी  होंगी।
आज तो नाचा होगा गुलमोहर भी
खुशकिस्मती उसने मनायी होगी ।
शुक्लांबरा कोमल कुसुम सी तुम
लालिमा कानों में उतर आयी होगी।
सुकर्म तेरे सबने पहचान लिए होंगे
उस आँख में गुलाबी छा गयी होगी । ………अरविन्द

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