कुण्डली
सब कोई सब की करत है पीठ पीछे बात ।
माथा टेके हो सामने ,छिप के करे आघात।
छिप के करे आघात यही जग का लेखा भाई ।
कोई न किसी का हो सके झूठी मान रजाई।
कहे अरविन्द कविराय मौन हो सहते हैं सब ।
सबकी खींचें टांग सभी फिर पछतावें हैं सब। ………… अरविन्द
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