बुधवार, 22 जनवरी 2014

भाषा की राजनीति : आवारा चिन्तन

                                  भाषा की राजनीति : आवारा चिन्तन
आजकल दिल्ली एक नयी प्रकार से राजनीति की प्रयोगशाला बनी हुई है। कोंग्रेस ,बी जे पी ,मोदी तथा आम आदमी पार्टी ,अरविन्द केजरीवाल सब भारतीय   राजनीति को समझने समझाने में लगे हैं। कसौटी पर राजनीतिक शालीनता है। आजकल जिस भाषा के वक्तव्य ,मीडिया द्वारा प्रकट किये जा रहे हैं ,उनमें कहीं सब शिष्टाचार का आभाव देखते हैं। मैं व्यक्तिगत रूप से केजरीवाल को शुद्ध राजनीतिज्ञ नहीं मानता हूँ ,पर राजनीति को सामान्य जन से जोड़ने का एक जन -निष्ठ प्रजातंत्र का उपकरण मानता हूँ। कारण है कि इससे पूर्व के राजनीतिक दल जनता से विमुख हो चुके थे ,वे अपनी जड़ों से टूट चुके लगते रहे हैं। केंद्र की राजनीति में अवसरवादी दल ,जैसे कभी मुलायम ,कभी लालू ,कभी ममता ,कभी माया आदि प्रादेशिक क्षीण और अल्प दर्शी नेताओं का सहयोग उनकी जरूरतों की पूर्ति का माध्यम रहा। इन लोगों की पिछले कुछ वर्षों से ,अगर आकलन किया जाये तो ,देश की राजनीतिक सम्पन्नता को कोई देन अथवा योगदान नहीं दिखाई देता। इन दलों और छुटभैये नेताओं ने सत्ता सुख भोगने वाले दलों के सत्व का दोहन किया। कांग्रेस सदा से अवसरवादिता को प्रश्रय देती रही है। बी जे पी को भी इन्हीं के कारण नुक्सान उठाना पड़ा ,इन नेताओं के हितों का सरंक्षण करने के कारण यह दल अपनी मूल विचारधारा से दूर हटा। आज मोदी की वैचारिक निष्ठां के कारण कुछ आशा जगी ,तो भी राजनीति का भाषिक तंत्र रास्ता रोक का खड़ा है। जो वक्तव्य हम लोग सुन रहे हैं ,लगता है कि बी जे पी अभी भी इस रूकावट की ओर ध्यान नहीं दे रही है।
केजरीवाल राजनीति का प्रतिक्रयावादी चेहरा है। वह जनता की प्रतिक्रिया है ,इसीलिए केजरीवाल की भाषा भारतीय सामान्य जनता की प्रतिक्रिय - भाषा के मुहावरे से जुडी हुई है। आम आदमी पार्टी से पहले के नेताओं ने जनता की प्रतिक्रिया को पहली बार देखा है। इसीलिए परम्परावादी दलों के पास इस भाषा का तोड़ नहीं है। लालू मुलायम ,माया ममता सब चुप हैं। इनकी चुप्पी का अर्थ समझाना जरुरी है। क्योंकि इनके मौन में इनकी कार्य -पद्धति छिपी हुई है।
अगर 2014 के चुनावों में स्थिर सरकार नहीं आती है , तो बड़ी विकट  स्थिति होगी। जिसे देश स्वीकार नहीं करेगा।
मुझे लगता है कि कांग्रेस आम आदमी पार्टी का सहारा लेकर केवल बी जे पी के वोट ही नहीं तोड़ेंगे बल्कि आम आदमी पार्टी को भी संस्थागत नुकसान पहुंचाएंगे।
बी जे पी को ध्यान देना चाहिए की देश का अधिक संख्यक वर्ग युवा और पढ़ा लिखा है.यह वर्ग सामाजिक ,पारिवारिक और वैयक्तिक समस्याओं से जूझ रहा है। इस वर्ग ने पारम्परिक पार्टियों को नकारना है। क्योंकि विद्रोह और विरोध इसी वर्ग में है। भ्रष्ट नेताओं की भीड़ तो आज हर पार्टी में है। हर मोहल्ले के लोग इनके प्रति कटुता पाल चुके हैं।
पार्टियों के प्रति प्रतिबद्धता में कमी भी आ चुकी है ---इस सत्य से भी मुँह नहीं मोड़ा जा सकता। अस्तु ,इस बार के चुनाव अधिक रुचिकर और आँखें खोलने वाले होंगे ,ऐसी आशा करनी चाहिए। .......... अरविन्द

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