क्यों खोलूं मैं मंदिर के पट ?
श्याम खड़ा निहारे सजनी क्यों करती हो हठ ?
तू भी नाच महा रास है क्यों न छोड़े मान रट ?
उठ गलबहियाँ दे री सखी अधराधर के दो पट।
प्रेम तो कुञ्ज बिहारी करता ,तू न छोड़े कपट।
बहुत प्रतीक्षा श्याम करायी क्यों खोलूं झटपट ?
तड़पी हूँ तुम बिन हे माधो ,अब सहो प्रेम लपट। .......... अरविन्द
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