शुक्रवार, 3 जनवरी 2014

इश्क़ का दीया जलाओ

इश्क़ का दीया जलाओ ,मिटे अँधेरा यह
प्रेम की महफ़िल सजाओ मिटे अँधेरा यह।
दर्द को अब मत छिपाओ ,मिटे अँधेरा यह
यार को भीतर बुलाओ ,मिटे अँधेरा यह। ,
देह के भीतर छिपा जो   उसे जगाओ
जगती के संताप को अब ठोकर  लगाओ
गीत का संगीत अब अपना  रचो ,गाओ  
दूसरों के शब्द छोड़ो उन्हें न अब सुनाओ
मेरे मन के मीत प्रियतम  मान ही जाओ 
अशब्द शब्द नाद का संगीत  गुनगुनाओ
छटेगा तब अँधेरा यह ,मिटे तब अँधेरा यह
बाहर आओ प्रफुल्लित धूप ,प्रकाश फैला है
ज्योति का यह पहरुआ सूरज निराला है
पंथ सारे प्रशस्त हैं  खुलेंगे ,मुस्कुराएंगे
स्वागतातुर लक्ष्य सारे मिलते ही जायेंगे
उल्लास को कुछ तो बुलाओ ,मिटे अँधेरा यह
इश्क का दीया जलाओ ,मिटे अँधेरा यह। …………अरविन्द












 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें