सोमवार, 20 जनवरी 2014

सो गयी पायल मेरी

सो गयी पायल मेरी ,बिछुआ भी सो गया
नींद के सिरहाने लग पिया कहाँ खो गया .
मैं तो अकेली मौन रातरानी सी महकती रही
आस कंगनों की खनक व्यर्थ ही बहकती रही .
तुम कहाँ खोये खोये चाँद से सरक गये --
तेरे द्वार लगी चकवी पिय पिय पुकारती रही .
विरह भीगी रात मेरी आँख मेरी रास भीगी
देह सारी प्यारी मेरी सागर के ज्वार भीगी
कब मेरी लहर बहर तेरे तट तक आयेगी ?
शबरी सी खड़ी तेरी बाट बिट बिट निहारती हूँ
शायद यह जिन्दगी अचाही उडीक बन जाएगी .……… अरविन्द 

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