महाकवि हैं जागते ,बीत रही है रैन
कविता रचने के लिए ,गिने ऐन गैन।
कवितायें नाच रहीं खुली आँखों माह
शब्द नहीं मिल पा रहे चैन मिले नाह ।
चैन मिले नाह कल्पना के पंख लगावें
दूर की कौड़ी पकड़ नित नव छंद रचावें ।
मानिनी नायिका सी खेले आँख मिचौनी
कवि बेचारे रपटते पकड़ें औनी पौनी। । ……… अरविन्द
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