चाँदनी को जब छू लिया प्राण चंचल हो गये
देह हुई सितार, तो सब तार झनझना गये।
गीत अनबोला उठा
संगीत नाद छा गए
अकहा सब कहा गया
अशब्द गीत भा गये।
अनाद नाद ऐसा उठा कि देह मन नहा गए .
चाँदनी को छू लिया , सितार झनझना गए।
झनझनायी उँगलियाँ
शिरायें कसमसा गईं।
स्पर्श की बयार में तो ,
ज्योति सनसना गयी।
पंच तत्व लीन हुए ,अक्षुण्ण क्षीणता छा गयी
पंच प्राण तालिका में सतरंगिणी लहरा गयी।
नाद पंच मुखर हुए
अनाहद नाद छा गए
बिस्माद स्वर जो उठे ,
ब्रह्म नाद भा गये ।
प्रकृति पुरुष के सभी संसर्ग तभी शरमा गए
चाँदनी को छुआ, तो सितार झनझना गए। …………अरविन्द
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