एकांत की अन्तरंगता
आज जब
सर्वत्र आवाजें ही आवाजें हो , वहां मनुष्य को एक सघन एकांत उपलब्ध हो जाए
--यह सौभाग्य का क्षण है। अपने आप से मिलने का अवसर मिलता है। अपने ही खो
चुके मन को ढूंढने का मौका मिलता है। अपने आप से बतियाने की चाह उठती है।
अपने ही जख्मों को कुरेदने का आत्मदाही सुख मिलता है। अपने सुख के क्षणों
को तरतीब देने का समय मिलता है। खुद ही प्राप्त किये दुःख पर हँसने की
अदम्य लालसा खिलती है। एकांत भी तो एक दर्पण है ,ऐसा दर्पण जो हमें हमारा
सर्वांग ,एक निर्मम डॉक्टर की तरह ,हमारे सामने खोल कर रख देता है। इसलिए
एकांत सौभाग्यदायी है। आदमी को अपने आप से भागने का अवसर ही नहीं मिलता।
एकांत कहता है कि लो ,अपने स्वयं का निरीक्षण करो। अपनी झुंझलाहट का
परीक्षण करो। अपनी चिर -संचित असफलताओं के दर्शन करो। अपनी दुविधाओं को
परखो और जानो कि कहाँ -कहाँ अपने आदमी होने से चुके हो --एकांत कहता है।
किसी अजदहे की तरह, एकांत अपनी गुंजल में लेकर मनुष्य को अपना ही सामना
करने के लिए बाध्य कर देता है। इसीलिए ज्यादातर लोग एकांत से भागते हैं।
क्योंकि एकांत निर्मम मित्र है। और फिर ऐसा एकांत मिल जाए जहाँ कोई भी अन्य
किसी से परिचित न हो , जहाँ भिन्न भिन्न संस्कृतियों का मिश्रण हो , जहाँ
कोई भी किसी की भाषा न समझता हो ,जहाँ कोई भी किसी दूसरे को जानता न हो ,
जहाँ सब भीड़ में भी अकेले हों ,ठिठुरते ठिठुरते हों , जहाँ कोई धर्म ही न
हो , कोई स्तुति न हो ,कोई पाखण्ड न हो ,कोई इच्छित स्वार्थ न हो और न ही
किसी दूसरे को देखने की चाह हो। ऐसा एकांत तो सौभाग्य से ही मिलता है। बुधवार, 25 जून 2014
एकांत की अन्तरंगता
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