सोमवार, 9 जून 2014

आस्ट्रेलिया ---7

आस्ट्रेलिया ---7
             अगर स्वतंत्रता का अर्थ स्थापित मूल्यों ,नियमो को तोड़ मरोड़ कर जीने का आनंद लेना है ,तो हमारा पंजाब इसके लिए एक अच्छा प्रदेश है। टूटी हुई सडकों पर झटके खाते ,खीझते ,कार ,स्कूटर ,या साईकल चलाने का दुखद सुख भोगना है ,तो हमारे होशियारपुर से अच्छी जगह कोई नहीं है।  अगर मिलावटी दूध ,मिठाइयां ,सब्जियां ,दालों इत्यादि का स्वाद लेकर अपने स्वास्थ्य की आंतरिक शक्ति की जांच करनी है ,तो भी हिन्दोस्तान से बढ़िया कोई अन्य जगह होगी ,मुझे संदेह है।
            यहां ऑस्ट्रेलिया में ऐसा कुछ भी नहीं है। साईकल से गिर कर कोई जख्मी ही नहीं हुआ। कोई बूढ़ा किसी गड्ढे में मेरे सामने नहीं गिरा। किसी ने किसी को छेड़ा नहीं। सभी अपने -अपने काम में व्यस्त ऐसे हैं जैसे रोबेट हों ,सांस लेने वाले पुतले हों  या अनुशासित नागरिक हों। किसी भी चौंक में मुझे कोई सिपाही नहीं दिखा। कहीं सड़क पर झगड़ा करते हुए ,एक दूसरे पर चिल्लाते हुए ,गालियां निकालते या दम दबा कर भागते हुए नहीं दिखा। लोग शांति से आ जा रहे हैं। मुस्कुरा रहे हैं ,खा पी रहे हैं। ताज़ी स्वच्छ सब्जियां ,साफ सुथरी दालें। निश्चिंत लोग जानते हैं कि खाने -पीने की चीजों में शुद्धता ,शुचिता और स्वच्छता पर संदेह नहीं है क्योंकि यहां की सरकार और अधिकारी अपने नागरिकों के स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हैं और ईमानदार हैं।
               मुझे यहां के एक सरकारी अस्पताल में जाने का अवसर मिला। वैसे तो मैं अस्पतालों से दूर ही रहना  चाहता हूँ ,क्योंकि वहां की दुर्गन्ध ,रोगग्रस्त चेहरे ,रुग्ण शरीर ,कराहते वृद्ध ,रोती स्त्रियां ,अरुचिकर और बीमार डॉक्टर ,बेदर्द नर्सें ,जगह -जगह फैली गंदगी ,भिनभिनाती मक्खियाँ मेरे भीतर बुद्ध का वैराग्य तो जगा देती हैं ,परन्तु दुःख और पीड़ा के निवारण का कोई भी प्रयत्न करने में असमर्थ मैं आज तक बुद्ध नहीं हो पाया हूँ। तो , मेरे मन में यहां के अस्पताल को देखने की इच्छा थी और मैं राजन के साथ चल पड़ा। कार में हमें पंद्रह -बीस मिनट लगे होंगे कि हम अस्पताल के मुख्य द्वार को पार कर चुके थे। मैं एक शांत प्रदेश में खड़ा था। चारों तरफ हरियाली ,कारों की कतारें परन्तु लोग नहीं दिख रहे थे। मुख्य द्वार से लगते लगते ही एक हरे भरे मैदान के बीच सीमैंट का एक चक्र दिखाई दिया। पूछने पर पता चला कि यह एक हैलीपैड है जिसका प्रयोग उन मरीजों के लिए किया जाता है ,जिन्हें बीमारी की गंभीरता के कारण किसी बड़े अस्पताल में परिवर्तित करना होता है। अद्भुत। बिलकुल उलट।
               हम कार से बाहर निकल आये और अस्पताल के भीतरी द्वार की ओर जाने लगे। पूरे रस्ते में मुझे कहीं भी गंदगी ,कागज का कोई टुकड़ा ,दवाइयों के रैपर --कुछ भी नहीं दिखा। कुछ अनुचित तलाशती आँखें  से कब अस्पताल में हम प्रवेश कर गए --पता ही नहीं चला।
               रिसैप्शन पर नर्सों की मुस्कान और प्रफुल्लित आँखों ने हमारा स्वागत किया ऐसे कि जैसे वे हमें वर्षों से जानती हों। कहीं बीमार व्यक्तियों की भीड़ ,लम्बी कतारें ,डॉक्टरों की प्रतीक्षा करती बेचारी आँखें ,दवाइयों के लिए इधर -उधर दौड़ते परिचारक ---कुछ भी तो दिखाई नहीं दिया। मैं बहुत हैरान था। नर्सें व्यस्त तो थीं ,पर थकी हुई नहीं थीं ,सब उल्लसित ,कर्मठ और शांत मिलीं।
अस्पताल में इतनी शांति के कारण जब जानने चाहे तो पता चला कि यहां बीमारों ,दुर्घटनाग्रस्त लोगों का इलाज सरकार की ओर से होता है ,इसलिए सभी जो बीमार हैं या पीड़ित या दुर्घटनाग्रस्त सब अपने -अपने विस्तरों पर हैं। दवाइयाँ अस्पताल देता है ,इसलिए न भाग -दौड़ है ,न अस्त -व्यस्तता और न ही नकली दवाई का डर। जीवन की समस्त सुखद संभावनाएं।
               जिस देश अथवा समाज में व्यक्ति का मूल्य हो वहां जीवन की नवीनता ,उत्कर्ष और सर्वोदय के  मार्ग स्वतः प्रशस्त होते हैं। हमारे देश में अस्पताल से स्वस्थ होकर लौटने वाले परमात्मा का धन्यवाद करते हैं और यहां डॉक्टरों के प्रति कृतज्ञतापूर्ण धन्यवाद है।
               भारतीय मानवता पर इससे बड़ा और तीक्ष्ण व्यंग्य अन्य नहीं हो सकता।
--------------------------------------------क्रमशः --------------अरविन्द -------------------------




             अगर स्वतंत्रता का अर्थ स्थापित मूल्यों ,नियमो को तोड़ मरोड़ कर जीने का आनंद लेना है ,तो हमारा पंजाब इसके लिए एक अच्छा प्रदेश है। टूटी हुई सडकों पर झटके खाते ,खीझते ,कार ,स्कूटर ,या साईकल चलाने का दुखद सुख भोगना है ,तो हमारे होशियारपुर से अच्छी जगह कोई नहीं है।  अगर मिलावटी दूध ,मिठाइयां ,सब्जियां ,दालों इत्यादि का स्वाद लेकर अपने स्वास्थ्य की आंतरिक शक्ति की जांच करनी है ,तो भी हिन्दोस्तान से बढ़िया कोई अन्य जगह होगी ,मुझे संदेह है।
            यहां ऑस्ट्रेलिया में ऐसा कुछ भी नहीं है। साईकल से गिर कर कोई जख्मी ही नहीं हुआ। कोई बूढ़ा किसी गड्ढे में मेरे सामने नहीं गिरा। किसी ने किसी को छेड़ा नहीं। सभी अपने -अपने काम में व्यस्त ऐसे हैं जैसे रोबेट हों ,सांस लेने वाले पुतले हों  या अनुशासित नागरिक हों। किसी भी चौंक में मुझे कोई सिपाही नहीं दिखा। कहीं सड़क पर झगड़ा करते हुए ,एक दूसरे पर चिल्लाते हुए ,गालियां निकालते या दम दबा कर भागते हुए नहीं दिखा। लोग शांति से आ जा रहे हैं। मुस्कुरा रहे हैं ,खा पी रहे हैं। ताज़ी स्वच्छ सब्जियां ,साफ सुथरी दालें। निश्चिंत लोग जानते हैं कि खाने -पीने की चीजों में शुद्धता ,शुचिता और स्वच्छता पर संदेह नहीं है क्योंकि यहां की सरकार और अधिकारी अपने नागरिकों के स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हैं और ईमानदार हैं।
               मुझे यहां के एक सरकारी अस्पताल में जाने का अवसर मिला। वैसे तो मैं अस्पतालों से दूर ही रहना  चाहता हूँ ,क्योंकि वहां की दुर्गन्ध ,रोगग्रस्त चेहरे ,रुग्ण शरीर ,कराहते वृद्ध ,रोती स्त्रियां ,अरुचिकर और बीमार डॉक्टर ,बेदर्द नर्सें ,जगह -जगह फैली गंदगी ,भिनभिनाती मक्खियाँ मेरे भीतर बुद्ध का वैराग्य तो जगा देती हैं ,परन्तु दुःख और पीड़ा के निवारण का कोई भी प्रयत्न करने में असमर्थ मैं आज तक बुद्ध नहीं हो पाया हूँ। तो , मेरे मन में यहां के अस्पताल को देखने की इच्छा थी और मैं राजन के साथ चल पड़ा। कार में हमें पंद्रह -बीस मिनट लगे होंगे कि हम अस्पताल के मुख्य द्वार को पार कर चुके थे। मैं एक शांत प्रदेश में खड़ा था। चारों तरफ हरियाली ,कारों की कतारें परन्तु लोग नहीं दिख रहे थे। मुख्य द्वार से लगते लगते ही एक हरे भरे मैदान के बीच सीमैंट का एक चक्र दिखाई दिया। पूछने पर पता चला कि यह एक हैलीपैड है जिसका प्रयोग उन मरीजों के लिए किया जाता है ,जिन्हें बीमारी की गंभीरता के कारण किसी बड़े अस्पताल में परिवर्तित करना होता है। अद्भुत। बिलकुल उलट।
               हम कार से बाहर निकल आये और अस्पताल के भीतरी द्वार की ओर जाने लगे। पूरे रस्ते में मुझे कहीं भी गंदगी ,कागज का कोई टुकड़ा ,दवाइयों के रैपर --कुछ भी नहीं दिखा। कुछ अनुचित तलाशती आँखें  से कब अस्पताल में हम प्रवेश कर गए --पता ही नहीं चला।
               रिसैप्शन पर नर्सों की मुस्कान और प्रफुल्लित आँखों ने हमारा स्वागत किया ऐसे कि जैसे वे हमें वर्षों से जानती हों। कहीं बीमार व्यक्तियों की भीड़ ,लम्बी कतारें ,डॉक्टरों की प्रतीक्षा करती बेचारी आँखें ,दवाइयों के लिए इधर -उधर दौड़ते परिचारक ---कुछ भी तो दिखाई नहीं दिया। मैं बहुत हैरान था। नर्सें व्यस्त तो थीं ,पर थकी हुई नहीं थीं ,सब उल्लसित ,कर्मठ और शांत मिलीं।
अस्पताल में इतनी शांति के कारण जब जानने चाहे तो पता चला कि यहां बीमारों ,दुर्घटनाग्रस्त लोगों का इलाज सरकार की ओर से होता है ,इसलिए सभी जो बीमार हैं या पीड़ित या दुर्घटनाग्रस्त सब अपने -अपने विस्तरों पर हैं। दवाइयाँ अस्पताल देता है ,इसलिए न भाग -दौड़ है ,न अस्त -व्यस्तता और न ही नकली दवाई का डर। जीवन की समस्त सुखद संभावनाएं।
               जिस देश अथवा समाज में व्यक्ति का मूल्य हो वहां जीवन की नवीनता ,उत्कर्ष और सर्वोदय के  मार्ग स्वतः प्रशस्त होते हैं। हमारे देश में अस्पताल से स्वस्थ होकर लौटने वाले परमात्मा का धन्यवाद करते हैं और यहां डॉक्टरों के प्रति कृतज्ञतापूर्ण धन्यवाद है।
               भारतीय मानवता पर इससे बड़ा और तीक्ष्ण व्यंग्य अन्य नहीं हो सकता।
--------------------------------------------क्रमशः --------------अरविन्द -------------------------




कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें