शुक्रवार, 13 जून 2014

. अरविन्द शे "र .

तेरी दुवाओं को तरसता हूँ पपीहे की तरह
कभी तो बरसो मेरे बादल स्वाति की तरह ।
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 इसी ख्याल से खुला रखती हूँ दर
 तू आये और मैं तुझे जगी मिलूं।
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प्यार को कुछ तो प्यार की तरह समझ मेरे प्यारे
क्यों खुली हथेली पर काँटों भरा गुलाब रखते हो ।
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अकेला कर गयी है तेरी मोहब्बत ऐ मेरे खुदा
भाड़ में अकेले चने को क्यों जलाया करते हो।

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नींद आँखों के बाहर पलकों में ही रहती है
एक म्यान में तलवारें दो समा नहीं सकतीं। .......... अरविन्द शे "र .
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