तेरी दुवाओं को तरसता हूँ पपीहे की तरह
कभी तो बरसो मेरे बादल स्वाति की तरह ।-------
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नींद आँखों के बाहर पलकों में ही रहती है
एक म्यान में तलवारें दो समा नहीं सकतीं। .......... अरविन्द शे "र .
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