यां चिन्तयामि
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गुरुवार, 26 जून 2014
आदमी का मन !
आदमी का मन !
जैसे उनचास पवन
गुंजरित जलतरंग
अशब्द शब्द भाष
सत्य का संलाप
इष्ट चित्त मग्न।
आदमी का मन !
संवाद विसंवाद
तुरही का नाद
अविश्रांत अश्रांत
क्लांत कभी शांत
मछली की छपाक्
उज्ज्वल प्रभात
मस्ती का उन्माद
जैसे उमड़ता गगन।
आदमी का मन !
सागर की है घुमडन
कोमल पांख सी छुअन
निरभ्र नील आकाश
उल्लसित प्रकाश
अकेला तपन
नीलकंठ मग्न
ज्ञान की है रात
अहं अनुताप
उपदेशक की बात
संत -असंत सगण।
आदमी का मन !
पाताल की ले थाह
असीम का उछाह
बाल चापल हास
उमड़ता विलास
स्वप्निल सी आस
कोई शापित उच्छ्वास
पीपल की बाहँ
प्रिया की छाहँ
उछलती उमंग
जैसे बजता मृदंग।
आदमी का मन !
प्रभु सा सहर्ष
चाहे उत्कर्ष
अज्ञात की परछाई
उलझा सा हरजाई
अनुरक्ति में भक्ति
कामना आसक्ति
विरक्ति का कूल
विगत नहीं शूल
अनुकूल प्रतिकूल
दिवा कर्म मग्न
तमिस्रा जागरण
मिथ्या इसका मरण।
आदमी का मन !
वासना का दूत
उपासना का भूत
मंदिर का अवधूत
प्यास का यह पूत।
निरंतर की चाह
अनजानी खोजे राह
अथक पथिक
रिक्त रहे हस्त
सदा अस्त व्यस्त।
गुण -अगुण -खान
पतित -पावन -महान।
आदमी का मन !----------------------------------------अरविन्द !
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