गुरुवार, 19 जून 2014

कविता -कवित्त

इल्जाम लगा के उन्होंने तो किवाड़ बंद कर लिए
लगा कि किस्मत ने हमें पर फिर से लगा दिए हैं।
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खुदा से पूछा जो मैंने उसका टिकाना
कहाँ नहीं हूँ मैं कह कर मुस्कुरा दिया।
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प्रेम प्रभु है, अभुक्त मुक्ति देता है
जो बाँध ले आकाश को प्रेम नहीं होता।
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वाह ! कमाल है ! लाजबाव कर दिया !
प्रभु ! फिर से यह जिंदगी कौन चाहेगा?
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न तप ,न साधना ,न अनुभव ,न ज्ञान है
वे  प्रभु की दूकान खोले आशीर्वाद बाँटते  ।
झूठ के झंडे के पाखंड बुलंद कर बाँग देते
दुनिया में आज वे धन औ -पुत्रों को बाँटते ।
अपने भीतर जिनके  शब्द न प्रकाश हुआ
सफ़ेद  बगुले  आजकल संतों को हैं डांटते । ………… अरविन्द
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