अपने आप को
जन्म देने के लिए ही
जन्म लेता है आदमी, जन्म देने के लिए ही
भरे
बादलों की तरह
आंच लगे थोड़ी सी
फट जाए गुब्बारा।
आदमी नहीं होना है।
खा जाता है इंसान को
धुँधुआता कोप भी -
धधकते हुए लावे की
आँखें नहीं होतीं। ................ अरविन्द
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