जिस्म जिनके जेहन में गहरा गया
उनके लिए हम बेवफा ही हो गए । --------
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सिर टिकाएँ जहाँ सकूँ हम ले सकें।
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खाली खाली सी देखीं तमन्ना की आँखें
रचने वाले की रूचि पर गुस्सा उमड़ आया।
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शर्मिंदा ही हो गया समुद्र मेरे सामने
जैसे ही मेरे मन की थाह से टकरा गया।
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ठंडी हवाएँ ,खुला आसमां
कहाँ छिपी हो जाने जहाँ ?
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बच्चों संग बैठी बुढ़िया
चरमर चरखा कातती।
जीवन सारा निकल गया
दुःख को सुख से बांटती। ………… अरविन्द
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