गुरुवार, 31 जुलाई 2014

प्रेम मुक्ति का पंथ

प्रेम मुक्ति का पंथ ,प्रेम नहीं बंधन होता
प्रेम अहं अतिक्रमण, स्व- विसर्जन सोता ।
प्रेम सौंदर्य का निकष , जीवन की जयति ,
प्रेम न इति ,न भीति ,न ही है यह भ्रान्ति।
प्रेम हृदय का कमल खिले मानस सर में ,
प्रेम सुरभि आत्म विमल की दिशि दृषि में।
कामना लिप्त तृषा को प्रेम नहीं कहते हैं ,
वासना उद्दीप्त हृदय प्रेमिल नहीं सहते हैं ।
प्रेम बांधता वहां जहाँ स्व अविकारी नहीं है ,
अतृप्ति ,आस प्यास बंधन है ,प्रेम नहीं है ।
ससीम असीम प्रेम की धरा ,खिली पवन है।
प्रेम जहाँ बंधन हो जाए शापित वह मन है ,
दिव्य विभूति समझ न पाये ,नग्न हुआ तन है।
नहीं जानते प्रेम मन्त्र को ,रटते प्रेम रटन है ,
प्रेम पंथ प्रकाश परम का ,आत्मा का धन है। ............. अरविन्द

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