सोमवार, 7 जुलाई 2014

अरविन्द दोहे


अरविन्द दोहे
परमात्मा के नाम पर , मची हुई खच पच्च।
अंधों हाथ हाथी लगा , सबका अपना सच्च।
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अद्भुत कलयुगी भजन है ,अद्भुत है आचार।
मंदिर मस्जिद फैल गया ,माया का व्यापार ।
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भगवानों की आजकल ,सजी हुई दूकान।
मूर्तियों में राम को ,बेचें सु संत महान । ।
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कवि का हृदय उदार हो ,सब भाव करे विचार।
श्रृंगार वीर ओ करूँ सब ,शांत भजन स्वीकार।
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बहुते बड़े औलिया देखै ,देखे बहुत ही महंत
राम प्यारा न मिला हमें ,दिखे अर्थ प्यारे संत ।
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अपने इस संसार में ,बड़ी प्रेम प्रेम की सोच।
दाढ़ी बेचारी क्या करे ,बैठ गोद में नोच ।
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कहीं कहीं सज्जन मिलें ,कछु एक संत समान
उनके चरनन मैं करूँ , साष्टांग हो प्रणाम। …………अरविन्द
परमात्मा के नाम पर , मची हुई खच पच्च।
अंधों हाथ हाथी लगा , सबका अपना सच्च।
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अद्भुत कलयुगी भजन है ,अद्भुत है आचार।
मंदिर मस्जिद फैल गया ,माया का व्यापार ।
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भगवानों की आजकल ,सजी हुई दूकान।
मूर्तियों में राम को ,बेचें सु संत महान । ।
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कवि का हृदय उदार हो ,सब भाव करे विचार।
श्रृंगार वीर ओ करूँ सब ,शांत भजन स्वीकार।
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बहुते बड़े औलिया देखै ,देखे बहुत ही महंत
राम प्यारा न मिला हमें ,दिखे अर्थ प्यारे संत ।
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अपने इस संसार में ,बड़ी प्रेम प्रेम की सोच।
दाढ़ी बेचारी क्या करे ,बैठ गोद में नोच ।
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कहीं कहीं सज्जन मिलें ,कछु एक संत समान
उनके चरनन मैं करूँ , साष्टांग हो प्रणाम। …………अरविन्द

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