मन जिसका हो बहुगुणी ,निर्मल चित्त निहार
सो संगी ही दे सद्गति , साधु कहत पुकार।
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उत्तम गति जो चाहता, ईर्ष्या द्वेष को त्याग
प्रेम पंथ पर तुम्हें मिले ,मुस्काता हुआ सुहाग।
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तन मैला मैला भला ,चित्त उज्ज्वल ही होय
सुक्ख शांति आनंद सब , निर्मलता में जोय।
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जो तू चाहे निर्वाण को ,कर राम संग प्रीत
जन्म मरण के कष्ट सब ,प्रभु करे निर्भीक। ………अरविन्द दोहे
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