पानी में लहराता है तेरा ये गुलाबी बदन
बंद पलकेँ हैं पुकारे तेरा ये गुलाबी बदन । मेरी सुबह चुप है , श्यामल शाम चुप है ।
सुन, न मेरा मन चुप है न तेरा तन चुप है
आओ छेड़ें सितार के तार, मेरी गुलबदन ।
पानी में लहराता है तेरा ये गुलाबी बदन । ।
सागर की लहरों पर नील कमल खिला है ,
या आकाशी नीलिमा में सूरज ही ढला है। .
संध्या की लाली तेरे आनन की चमक है
नदिया की जांघ पर गुलमोहर खिला है।
जगमग झिलमिलाते दीपक सा ये बदन
पानी में लहराता है तेरा ये गुलाबी बदन। ………अरविन्द श्रृंगार
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