मंगलवार, 1 जुलाई 2014

अरविन्द क्षणिकाएँ

लोगों  की चिंता छोड़  अब अपना ही जीवन जियो
कब तक दुनिया के ख्याल में खुद को तबाह करें हम।
-------
पीने का सरूर है या तेरी यारी का दम
ख्वारी ऐसी  चढ़ी  है कि उतरती नहीं ।
----------
खुले हुए हैं मयकदे कदम कदम पर
तुम भी आ जाओ यहां साकी भी हैं।
---------
बड़े दिनों से इच्छा थी कि झूम जाए हम
मुद्दत के बाद दोस्तों का बुलावा आया ।
-----------
दुश्मनों की तबियत कुछ नासाज है
आराम फरमा रहे हैं इसीलिए हम ।
-----------
 शिखरों बीच क्यों न अपनी नाक रख दें
क्या कर लिया इसको इतना संभाल कर ?
-------------
हमने नहीं जिया कोई हमको जी गया
पल भर के लिए भी  अपने न हुए हम।
----------
लिख लिख के उसने पन्ने भर दिए
सीधी सी बात उसको कहनी नहीं आई।
------------
जनाब ! बड़ी दूर से आँखें तरेरते हैं
प्यार का चश्मा टूट गया लगता है।
----------
न किताब है ,न कमरा है ,न छत ही यहां है
कहाँ जाके बैठूं कि सिर को खुजाया जाए ?………अरविन्द क्षणिकाएँ
-----------

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें