शुक्रवार, 4 जुलाई 2014

गीत

            गीत
सारी धरती आकाश हमारा ,हम वसुधा के वासी
यह सागर ,यह लहर हमारी हम इसके अभिलाषी ।
क्यों बांधें हम अपनी सीमा गगन भी अपना सारा
भांति भांति के लोग भी अपने ,ये ब्रह्माण्ड प्यारा।
क्षीण क्षुद्र सी काया चाहे ,मन सागर सा है गहरा
इस सागर की भी सीमा है , असीम हमारा प्यारा।
भाषा चाहे भिन्न हो सबकी ,भिन्न रूप रंग सारे
भिन्न भिन्न पहरावा सबका ,भिन्न न भाव हमारे।
फिर भी मानव सारे  जग  में  मानव  ही  कहलावें
अपना अपना जीवन जीवें ,जग को सुभग बनावें।
तोड़ें सीमा हम सब अपनी क्यों क्षीण क्षुद्र को चाहें।
बाहों में इस गगन को भर लें ,सारा आकाश हमारा
हम असीम के अंश सभी हैं ,अखण्ड हमारा सारा।
हम बसुधा के वासी सारे ,सुंदर  ब्रह्माण्ड हमारा । ………… अरविन्द


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