छोटे छोटे सत्य समझने ,
लग जाते हैं साल कभी।
आँख खोल कर जिसे मानता ,
वहीं छल ,छद्म महा छाया।
भ्रम को सत्य ,सत्य को भ्रम ही
सदा सभी ने माना है।
सरल सरल को सदा जटिल कर
रचते सब अपना तानाबाना है ।
जगती सारी प्रपंचमयी है ,
जानबूझ कर फंसता है नर।
जब तक गैया दूध है देती ,
तब तक दुलत्ती सहते सब।
पशु नहीं फिर भी पशुता को ,
त्याग नहीं पाता है जग।
राम नाम का सत्य समझ में
आता नहीं जिंदगी भर। …………अरविन्द
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