शिकस्तें भी हमारी मासूमियत ही हैं
संभाल ली हैं किताबों में फूलों की तरह।
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डगमगाते कदमों ने ही चलना सिखाया है
लड़खड़ाना आज हमने आदत बना ली है ।
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पूजते रहे जिन्हें हम भगवानों की तरह
पत्थरों ने भी कभी क्या स्वभाव बदला है?……… अरविन्द
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