सच्च से आँख मिलाना कुछ मुश्किल तो है
दिलासे न होते ,तो और भी मुश्किल होती।
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चेहरा सकून जिंदगी सब एक जैसे हैं
सच्चाई कहीं और है जो दिखती नहीं है ।
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प्यार क्या ? एक बुखार ही तो है
परखने लगो तो उतरने लगता है।
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नजर से ओझल तुम हो नहीं सकते
तोहमत है कि नजरअंदाज करता हूँ।
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जरा -सा टेढ़ा प्रियतम ही प्यारा लगता है
कहीं देखा है बांकेबिहारी को सीधे खड़े हुए ?
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खुदा खुद हैरान है दुनिया बना कर
कहीं नकाब देता है , कहीं बेनकाब करता है। ………अरविन्द
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