आज गुरु पूर्णिमा है। इसलिए गुरु तत्व पर विचार
करना अपेक्षित है। आजकल शिक्षित तथा अर्धशिक्षित समाज में अधिकांश लोग गुरु
के प्रति कोई विशेष आदर नहीं रखते बल्कि गुरु तत्व पर ही प्रश्न करते हैं
कि गुरु की आवश्यकता है या नहीं ? इनमें अधिकांश लोगों का विचार है कि
मनुष्य को जीवन के पथ पर स्वावलम्बी होकर चलना चाहिए ,उसे शक्ति अथवा भाव
के विकास के लिए किसी दूसरे पर आश्रित नहीं होना चाहिए। आध्यात्मिक पथ पर
भी मनुष्य का सम्बन्ध साक्षात परमात्मा के साथ है ,जिसके लिए भक्ति मार्ग
है। इन दोनों के बीच गुरु नामक किसी व्यक्ति के लिए स्थान कहाँ ? इस प्रकार
के चिंतन में गुरु की सत्ता के प्रति संदेह और अनास्था का स्वर सुनाई देता
है। अध्यात्म क्षेत्र में गुरु की आवश्यकता है अथवा नहीं , इस विषय पर
विचार करने से पूर्व साधारणत: हम इसी निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि जीवन में
पहले -पहल ऐसी एक अवस्था विद्यमान रहती है , जब जीव को शक्ति ,ज्ञान ,भाव
आदि सभी विषयों में परमुखापेक्षी रहने को बाध्य होना पड़ता है। ऐसा ही
प्रकृति का नियम है। तदनन्तर , भीतरी शक्ति और बुद्धि वृति के विकास के साथ
बाहरी सहायता इतनी अपेक्षित नहीं रहती। बाहरी सहायता की अपेक्षा न रहने
पर भी भीतर किसी अचिन्त्य शक्ति की अधीनता तब भी उसे रहती है। उसके बाद
जीवन -पथ पर पूर्ण और चरम स्थिति प्राप्त होने पर स्वाधीनता का विकास होता
है एवं अन्य किसी की भी अपेक्षा नहीं रहती। स्वभाव होने से ही जो होने वाला
होता है ,वह निरपेक्ष रूप से हो जाता है।
साधारणतः आरम्भिक अवस्था में प्रत्येक व्यक्ति को निर्देशक
की आवश्यकता रहती है। दूसरी तरफ आध्यात्मिक जीवन अत्यंत गहन , दुर्गम है।
इसलिए इस पथ पर बाहरी सहायता के बिना चलना ,विकास को अर्जित करना , साध्य
को उपलब्ध होना सम्भव नहीं है क्योंकि अध्यात्म व्यक्ति विकास की
चरमोपलब्धि है। इसी बाहरी सहायता को प्राप्त करने के लिए गुरु आवश्यक है।
यह भी जानना चाहिए कि सभी अध्यात्म -पथ के पथिक नहीं हो सकते। क्योंकि जीवन
की भौतिक सुख सुविधाओं को प्राप्त करना ही ऐसे लोगों के लिए महत्वपूर्ण
है। परन्तु वे ,जो परम तत्व के अभिलाषी हैं ,अध्यात्म पथिक हैं ,उन्हें
गुरु की सहायता अवश्य चाहिए। इस विषय में विशद् आलोचना से पूर्व गुरु तत्व
क्या है ,गुरु का वास्तविक कार्य क्या है ,गुरु कितने प्रकार के होते हैं
,गुरु के साथ शिष्य का तथा शिष्य के साथ गुरु का वास्तविक सम्बन्ध क्या है
,गुरु -शिष्य भाव की चरम परिणति कहाँ होती है ? इत्यादि विषयों की
आवश्यकतानुसार आलोचना भी जरुरी है। शुक्रवार, 11 जुलाई 2014
गुरु पूर्णिमा
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