दोस्ती की हो तो दोस्ती का अहसास जानोगे ।
व्यापारियों के लिए दोस्ती बसशुगल होती है।
-------दुःख,दर्द, कष्ट, पराजय सब सह लेता है आदमी।
नहीं सहा जाता वह दर्द जो पाखंडी दोस्त देता है।
--------दोस्ती के अहसास ने ही जिन्दगी आसान कर दी ।
वरना इस जिन्दगी में जीने लायक रखा ही क्या है ।
---------
व्यापारियों के लिए दोस्ती बसशुगल होती है।
-------दुःख,दर्द, कष्ट, पराजय सब सह लेता है आदमी।
नहीं सहा जाता वह दर्द जो पाखंडी दोस्त देता है।
--------दोस्ती के अहसास ने ही जिन्दगी आसान कर दी ।
वरना इस जिन्दगी में जीने लायक रखा ही क्या है ।
---------
दोस्ती के भी दिन होते हैं, यह तो अभी पता चला।
यह तो सदा बहार उत्सव है, हर दिन मनाया जाता है।
---------
तुम्हें वासंती रंग में देखता हूँ ,वसंत उतर आती है ।
हमारे यहाँ तो सारा साल पतझड़ ही रहा करती थी।
---------
यह तो सदा बहार उत्सव है, हर दिन मनाया जाता है।
---------
तुम्हें वासंती रंग में देखता हूँ ,वसंत उतर आती है ।
हमारे यहाँ तो सारा साल पतझड़ ही रहा करती थी।
---------
यार दिलदार मिले ,रब्ब की इनायत है ।
ज्यादातर तो लोग मुहं में राम राम रखते हैं।
----------बड़ी मासूमियत से आते हैं , दिल चीर जाते हैं।
यार हैं अपने कि हम परदे उठा नहीं सकते ।
------------दिल से बने रिश्ते को दिल से सम्भालियेे
दिल में न रखा तो दिल दिल ही न रहेगा।
-----------ढूंढता था मैं जिसे नित गिरि कन्दराओ में
वह प्रतीक्षा में था मेरी ही अपनी गुफाओं में ।
------------चिंता क्यों करता है मेरे मन ।
मुक्त करो अभिव्यक्ति
खोलो रे , जड़ बंधन।
चेतना में सत्य विराजित
अनुभूति अखंड
अविभाजित,
तू सोच रहा पर को
जो है बंधन ।
कटु नहीं सत्य,
न मधु है।
कटुता , मधुता
मोहित के मूढ़ बंधन।
रे मन !
अभिषेक करो
अपने ललाट पर
अनुभूति के सत्य का
बेलाग
अभिव्यक्त
सुरभित चन्दन ।
-----------
दिल से मिले दिल जख्म दे नहीं सकते।
शर्त एक ही केवल दिल बनावटी न हो।...अरविन्द
ज्यादातर तो लोग मुहं में राम राम रखते हैं।
----------बड़ी मासूमियत से आते हैं , दिल चीर जाते हैं।
यार हैं अपने कि हम परदे उठा नहीं सकते ।
------------दिल से बने रिश्ते को दिल से सम्भालियेे
दिल में न रखा तो दिल दिल ही न रहेगा।
-----------ढूंढता था मैं जिसे नित गिरि कन्दराओ में
वह प्रतीक्षा में था मेरी ही अपनी गुफाओं में ।
------------चिंता क्यों करता है मेरे मन ।
मुक्त करो अभिव्यक्ति
खोलो रे , जड़ बंधन।
चेतना में सत्य विराजित
अनुभूति अखंड
अविभाजित,
तू सोच रहा पर को
जो है बंधन ।
कटु नहीं सत्य,
न मधु है।
कटुता , मधुता
मोहित के मूढ़ बंधन।
रे मन !
अभिषेक करो
अपने ललाट पर
अनुभूति के सत्य का
बेलाग
अभिव्यक्त
सुरभित चन्दन ।
-----------
दिल से मिले दिल जख्म दे नहीं सकते।
शर्त एक ही केवल दिल बनावटी न हो।...अरविन्द
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें