रविवार, 12 अक्टूबर 2014

कविता माँ है।

कविता माँ है।

रोना
चीखना
चिल्लाना
ताना मारना
दोष देना
सब संभाल लेती है।
कविता माँ ही तो है।

सुख
संवेदना
प्रेम प्यार
आत्मीयता
सहानुभूति
ख्याति और वीरता
श्रृंगार
उदारता से देती है।
दुःख हरती है।
कविता माँ है।

दुःख हो
दर्द हो
आह हो या
कराह हो
कष्ट और अवसाद हो
निराशा , घना बोध
अपराध हो
पश्चाताप का दाह हो
पौंछती है, संताप हरती है।
कविता माँ है।........अरविन्द

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