शुक्रवार, 3 अक्टूबर 2014

मुश्किल है

मुश्किल है तेरी गली में बार बार आना।
मुश्किल है तुम्हें देख वहां मेरा मुस्काना ।

हद तो समुद्र की भी होती होगी कही न कहीं।
मुश्किल है बेहद गहरे अनुभव को लांघ पाना।

वे शब्द भी दे दो जो तुम्हें बयाँ कर सकें ।
मुश्किल है भाषा की गरीबी को कह पाना।

बादलों की ओट से झांकना तेरी आदत है।
मुश्किल है मेरी तुम्हें जमीन से पकड़ पाना।

बहुत हैं ऐसे जो हरदम प्रेम को ही पुकारते हैं ।
तुम सामने होते हो नहीं कह पाता कह पाना।

एकांत में पुकारता हूँ झलक दिखा जाते हो ।
अच्छी नहीं है आदत तेरी यूँ छुपना छिपाना ।
..............अरविन्द...

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